कविता



संसार  को बचाना है !

प्रिये !

गतिहीन जीवन में
अवरुद्ध होगा यौवन
उद्धार कैसे करोगी
विश्व समुदाय का
ग्रामोदय, ज्ञानोदय, ब्रम्होदय
जननी-जन्मभूमिश्च की
होगी सुरक्षा कैसे !
बढ़ेगा विकसित जीवन
संदेह हो रहा है !
अस्तु !.........च!
आगे बढ़ना है औ बधान है
हीनताबोध से स्वयं को
मुक्त कराना है....!
यौवन को जवान बनाना  है |
अंत  में संसार को बचाना है ||

०१अप्रैल २०१३




सावधान  अहिराज आ रहा है ?

सुन्दर है, सुघर है, उत्तम है 
छद्म भेष धारण किये
मोहपाश में बाँधता है
समाज की रंगीन पट्टियाँ
शरीर पर लिए रहता है
मुहँ से सूँघता है "औ"
पूँछ से ही मारता है वह
चोट करता ह्रदय पर |
नारद का काम करता है
सब काम नाकाम करता है |
राम कृष्ण से भी बढ़कर
स्व की आभा से जलता है |
लूटने में भी लूट जाता है
ऐसे-वैसे भी काम करके
विश्व विजयी बन जाताहै |
अंधेर  नगर में वह चरितार्थ  करता है
(जहाँ फेड न खूँट वहाँ रेड परधान )
काश  ! वह मुक्त हो पाता
उस दोहरे चरित्र से
होता कल्याण राष्ट्र का
रोशनी विखर जाती कभी
मनोहक छटा से आच्छादित होकर
कोई न सहता उसका आघात
सावधान  !  अहिराज आ रहा है !!

०२ अप्रैल २०१३



अपनी राह 


अक्षोर क्षितिज के पार
मेघ करते श्रृंगार
धरा की शोभ को बढाने की लालसा
रूप-रंग बदलने को मजबूर
मानव मन की गरिमा
बारिश के बहाने
बढते-बढाते
चल निकलते अपनी राह |

10/09/2014

********डॉ. मनजीत सिंह*******



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