मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

गर्द जमी पर जीने का अंदाजे बया करना मुनासिब नहीं
गर नसीब हों तो जीकर तो देंखें, फर्क नजर आएगा|
राह चलते मुसाफिर की हालात एक बार पूछ क्रर तो देंखें,
जमीन और आसमान का फासला नजर आएगा ||
 
क्या नहीं कर सकती है नारी ?

अबला की बला को टाल सकती है नारी,
पुरुषवर्चस्व को चकनाचूर कर सकती है नारी,
छोटी चादर को बढाकर जीना सीखा सकती है नारी
समाज को आगे बढाकर स्वर्ग बना सकती है नारी,
सभ्यता को उज्ज्वल बना सकती है नारी
भारत से उड़ गयी सोने की चिड़िया को
पुनः वापस ला सकती है नारी
फिर हम क्यों कहते है कि-
नारी ये नहीं कर सकती,
वह नहीं कर सकती
जबकि सत्य यही है कि
कल्पना की उड़ान को पूरा कर सकती है नारी||
 
 
सादा पन्ना

सादा पन्ना था चौकौर
कोरे सन्देश को लेकर
ज्ञान की सरणी में
कुछ विचार देने को बैचैन
उदास मन से वह
परेशान रहता था
न कभी हँसता था
न कभी हंसाता था,
कोई इसे छेडता था तो
रूंधे गले से वह कहता-
भाई- मैं तो हो चला बूढा
लोगों ने तो नए को
इतना मान दिया कि
मेरा सम्मान खतरे में पड़ गया |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण

बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण बेहतरीन पल : चिंतन, चुनौतियाँ, लक्ष्य एवं समाधान  (सरकारी सेवा के बीस साल) मनुष्य अ...