बुधवार, 28 नवंबर 2012

आधुनिक माएं बच्चे को घूट
पिलाकर इतना विद्वान बनाने पर
आमदा हैं कि -
आगे की सोच को
विराम लग जाएगा|
न रहेगी चिंता, न बचेगी शिक्षा
तब तो बस यही कहते सुना जाएगा
शिक्षा तो हमने बचपन में
पा ली है, कैसीशिक्षा ?
यह प्रश्न अनुतरित रहेगा !
क्योंकि
उस समय यही स्थिति रहेगी
हर घर में एक तथाकथित
शंकराचार्य जरूर होंगे
उपनिषद के बहाने न सही
पुरानी पीढ़ी की समीक्षा तो
जरूर करते रहेगे|
जमाना बदल गया है
इसी का परिणाम है-
हम क्या करे यह तो
जमाने का वरदान है|
ऐसे ही एक बालक परेशान होकर
मुझसे आहिस्ते से सुनाने लगा-
क्या बताऊँ भैया ----
बचपन में हमें बड़ा सताया गया
इसी कारण मैं दस तक भी नहीं पढ़ पाया
कभी माँ की धमकी, कभी पापा का डंडा
भाई ने तो रगड़ ही दिया
यहाँ तक तो थी था लेकिन
मजदूरी करते मील में जाने को
मजबूर वह जरूर किया |
कभी न डराना बच्चों को
कभी न मारना उसका बचपन
जीने देना उसे बस स्व का जीवन|
दिनांक -२८/११/२०१२

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