रविवार, 21 अप्रैल 2013

बंदरबाट

बंदरबाट


सरकारी महकमें में
जाकर देखें तो जरा
सुबहोशाम मचा कोहराम
बाबू-नेता-क्रेता-विक्रेता
उलझ-उलझ कर करते
बंदरबांट हैं.............!

स्वर्ग की कल्पना करते
लोक-परलोक में उलझे लोग
नारद-सारद-विष्णु-राम को
उतारते रहते अपनी जेहन में
मचा रहें ऊधम अपने आप है
बंदरबांट है................!

शिक्षा नगरी सूनी होती
बिखर रहें है उनके सपने
गुरू-शिष्य भी बदले-बदले
बना रहें हैं अपने-अपने
कर रहे हैं बहुत गुरूर हैं
बंदरबांट है ...........!

२१ अप्रैल १३

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