पराशर मठिया वाले तुमड़िया बाबा
(तुमड़ी की चर्चा से स्मरण लाजमी )
उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर गंगा और घाघरा नदियों के दोआब में बसे बलिया जनपद ऋषि-मुनियों की भूमि रही है। बलिया गजेटियर के अनुसार-महर्षि भृगु के इस भू-भाग पर आकर आश्रम बनाने के बाद इसे भृगुक्षेत्र के नाम से जाना जाता था ।इसके बाद उनके शिष्य दर्दर मुनि के नाम से दर्दर क्षेत्र के नाम से जाना जाता था।
जनपद मुख्यालय से 14 किमी पूर्व राष्ट्रीय राज्य मार्ग 31 पर स्थित परसिया ग्राम में ख्यातिलब्ध पराशर मुनि का आश्रम है। पराशर ऋषि आश्रम परसिया में अभी भी पराशर मुनि के समाधि स्थल के दो सौ मीटर के परिधि में कहीं भी खुदाई करने पर मनुष्यों का कंकाल व हड्डियां मिलती है। कहा जाता है कि-यहाँ 84 हजार साधु-महात्माओं ने तपस्या की है और समाधि ली है और इसके पास स्थित पोखरे में स्नान करने से कुष्ठ रोग की समाप्ति हो जाती है. वहीं पोखरे का पाँच बार परिक्रमा करते हुए जौ बोने का रिवाज है। बहरहाल पराशर मुनि पर बातें फिर कभी। अभी उस मठिया में निवास किये तुमड़िया बाबा के बारे में चर्चा की बारी है।
इसी पराशर की मठिया में एक तुमड़िया बाबा हुआ करते थे। वह गाँव के लिए मैला आँचल वाले डॉ. प्रशांत से भी बढ़कर थे। उनके पास हर मर्ज की दवा रहती थी। लोग-बाग बीमार पड़ने पर सबसे पहले उनसे मिलते थे। ज़ब कभी किसी को भूत पकड़ ले तो भभूत देते थे। कभी कोई बीमार पड़ता था तो भी भभूत देते थे। इसके अलावा हरेक रोग के कुछ न कुछ उपाय बताते थे। मेरी ईया कहती थी कि-बचपन में एक बार मेरा शरीर पूरा नीला पड़ गया। उस समय घर के सभी लोग बहुत परेशान हो गये। किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। हमारे बाबा बहुत ही सरल हृदय के धनी थे, उनके मन में कभी किसी के प्रति न ही द्वेष भाव रहा और न ही किसी के प्रति कृतघ्न थे अपितु एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे। इसकी चर्चा फिर कभी।
वह तुरंत घर आकर हमें लेकर तुमड़िया बाबा के पास ले गये तो वह देखकर पहले खूब हँसे और पूछे-
इनकर माई कवना रंग के साड़ी पहिनले बाड़ी?
(इनकी माँ किस रंग की साड़ी पहनी है?)
बाबा बोले-नीला
तब उन्होंने तुरंत कहा कि-यह उसी साड़ी का रंग है।
ऐसे ही चमत्कारी थे तुमड़िया बाबा।
क्रमशः...
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