रविवार, 20 जून 2021

 मेरे बाबूजी


बचपन की हजार ख्वाइशों को

चुटकी में पूरा करने के लिए

यात्राएँ करते चलते रहे

उनके लिए  कलकत्ता (कोलकाता) परदेस नहीं रहा

कहते हैं-जन्म के समय मुठ्ठी बँधी रहती है

अंतिम समय यह खुल जाती है

परन्तु बाबूजी आजन्म मुठ्ठी बाँधे रहे 

यह हम लोगों के लिए अमृत वर्षा की स्वर्ण-छत्र-निर्मितअजस्र स्रोत होती थी ।अर्थ के अलावा सब कुछ भरा पड़ा था।

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