14 दिसंबर से हैदराबाद में शुरू हुए पुस्तक मेले
में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ| हम लोग उस दिन शाम को वहाँ पहुँचे, उस
समय वहाँ उद्घाटन समारोह हो रहा था| इसी दौरान हमने इतने बड़े मेले में एक
नजर दौडाया तो यही समझ में आया कि यह मेला विशेषतः दक्षिण भारत के
प्रकाशकों से सराबोर था| यह बात अलग है कि दिल्ली से राजकमल प्रकाशन भी
दिखाई दिया लेकिन इस एक दो दुकानों से हम क्या अनुमान लगा सकते है? क्या
इसे हम राष्ट्रीय स्तर का पुस्तक मेला
कहेंगे? यदि कहेंगे तो यह भी साथ में ही जोड़ना पड़ेगा कि यहाँ हिन्दी की
किताबें अंग्रेजी के समक्ष दब सी गयी थी| जिस समय हम लोग राजकमल में
किताबें देख रहे थे ठीक उसी समय हैदराबाद विश्वविद्यालय के एक प्राध्यापक
महोदय वहाँ पहुँचे| नाम लेना मुनासिब नहीं समझता| वह शायद इस आयोजन समिति
के सदस्य रहे हों, क्योंकि उनके वक्षस्थल पर इस मेले का प्रतीक चिन्ह
सुशोभित था और उनके साथ पांच-छ लोगों का समूह उनके ओहदे का प्रमाणपत्र
प्रस्तुत कर रहा था| उन्होंने बड़े ही मुक्त भाव से मिर्जा ग़ालिब की किताबों
की मांग की| इसी में विक्रेता ने ढेर सारी पुस्तकें उनके सामने लाकर राख
दी| यह देखकर वह आश्चर्यचकित हो गये| किताबों को उलटे पलटे और यह कहते हुए
चलते बने कि-अरे यार हिन्दी में भी उर्दू लेखकों/शायरों की अच्छी किताबें आ
गयी है| हमने उनके माथे पर चिंता की लकीरे देखी और उनसे संवाद करने का
प्रयास किया | परन्तु वह तो यह कहते हुए आगे बढ़ गये कि मैं गणित का
प्रोफेसर हूँ| इस तरह नेकलेस रोड की चकाचोंध में अनजान मैं इस घटना के बारे
में सोचता रहा|.......आप क्या सोचते हैं ?
मीडिया में हिन्दी साहित्य का नया चेहरा.....अथ साहित्य जिज्ञासा । इस मंच पर हिंदी साहित्य से संबंधित नवोदित कवि-साहित्यिक गतिविधियों को प्रश्रय दिया जायेगा । इसके साथ ही इस ब्लॉग पर प्रकाशित विचार लेखक के स्वयं के हैं ।इससे मेरे प्रतिष्ठान या संस्थान से कोई संबंध नहीं है । यहाँ बाल साहित्यकारों की रचनाएँ भी प्रकाशित की जायेगी । जो सज्जन इस मंच पर अपनी रचनाएँ प्रकाशित करना चाहते हैं, उनका हृदय से स्वागत है । ऐसे रचनाकार अपनी रचनाएँ मुख्य पृष्ठ पर दिये लिंक के माध्यम से भेज सकते हैं ।
रविवार, 23 दिसंबर 2012
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण
बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण बेहतरीन पल : चिंतन, चुनौतियाँ, लक्ष्य एवं समाधान (सरकारी सेवा के बीस साल) मनुष्य अ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें