रविवार, 23 दिसंबर 2012

14 दिसंबर से हैदराबाद में शुरू हुए पुस्तक मेले में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ| हम लोग उस दिन शाम को वहाँ पहुँचे, उस समय वहाँ उद्घाटन समारोह हो रहा था| इसी दौरान हमने इतने बड़े मेले में एक नजर दौडाया तो यही समझ में आया कि यह मेला विशेषतः दक्षिण भारत के प्रकाशकों से सराबोर था| यह बात अलग है कि दिल्ली से राजकमल प्रकाशन भी दिखाई दिया लेकिन इस एक दो दुकानों से हम क्या अनुमान लगा सकते है? क्या इसे हम राष्ट्रीय स्तर का पुस्तक मेला कहेंगे? यदि कहेंगे तो यह भी साथ में ही जोड़ना पड़ेगा कि यहाँ हिन्दी की किताबें अंग्रेजी के समक्ष दब सी गयी थी| जिस समय हम लोग राजकमल में किताबें देख रहे थे ठीक उसी समय हैदराबाद विश्वविद्यालय के एक प्राध्यापक महोदय वहाँ पहुँचे| नाम लेना मुनासिब नहीं समझता| वह शायद इस आयोजन समिति के सदस्य रहे हों, क्योंकि उनके वक्षस्थल पर इस मेले का प्रतीक चिन्ह सुशोभित था और उनके साथ पांच-छ लोगों का समूह उनके ओहदे का प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर रहा था| उन्होंने बड़े ही मुक्त भाव से मिर्जा ग़ालिब की किताबों की मांग की| इसी में विक्रेता ने ढेर सारी पुस्तकें उनके सामने लाकर राख दी| यह देखकर वह आश्चर्यचकित हो गये| किताबों को उलटे पलटे और यह कहते हुए चलते बने कि-अरे यार हिन्दी में भी उर्दू लेखकों/शायरों की अच्छी किताबें आ गयी है| हमने उनके माथे पर चिंता की लकीरे देखी और उनसे संवाद करने का प्रयास किया | परन्तु वह तो यह कहते हुए आगे बढ़ गये कि मैं गणित का प्रोफेसर हूँ| इस तरह नेकलेस रोड की चकाचोंध में अनजान मैं इस घटना के बारे में सोचता रहा|.......आप क्या सोचते हैं ?

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