रविवार, 26 दिसंबर 2021

 नशा : एक अभिशाप


(पुराने लिखे की माया)


आज का युवा वर्ग किस तरह से नशे की जकडन में फंसता चला जा रहा है, इसकी चर्चा एक गोष्ठी में हुई | संयोग से मुझे भी आमंत्रित किया गया था| वास्तव में यह प्रयास प्रशंसा के योग्य कहा जा सकता है क्योंकि छत्तीसगढ़ राज्य में यह अपने चरम पर है| इस विषय पर मूर्धन्य विद्वानों ने अपने विचार रखे तथा नवयुवकों को इससे मुक्त होने की बात कही-जब हमारी बारी आयी तो हमने अदम गोंडवी जी को याद किया, क्योंकि उनमें से एक विद्वान पुरुष ने कहा कि नशा के लिए मुख्य जिम्मेदार हमारी सरकार है| जहाँ तक मेरा विचार है , इसका सबसे बड़ा और अंतिम जिम्मेदार वह प्रत्येक मनुष्य है, जो न केवल अपना अपितु अपने सम्पूर्ण परिवार को इस चपेटाघात में लेकर बदनामी का तमगा स्वयं धारण करता है- अदम जी ने कितनी ख़ूबसूरती से बयां किया है कि-

काजू भुने है प्लेट में, विह्स्की गिलास में |

उतरा है राम राज विधायक निवास में 

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत 

कितना असर है खादी के उजले लिबास में |

आज जब बड़े-बड़े राजनेता चुनाव के मैदान में जाते हैं, तो पैसा के रूप में मदिरा की धारा बहती है, जब तक यह धारा नहीं रहती तब तक न ही युवा आगे आते है और न ही जनता संतुष्ट होती है| दुसरे शब्दों में कह सकते है कि , यह तो लोकतंत्र की समाधि पर दिया जाने वाला अर्घ्य है, जिसके बिना लोक-जन अधूरा प्रतीत होता है| यहाँ पर प्रश्न उठाना लाजमी हैं कि- आखिर यह आयी कहाँ से? क्या समाज के तथाकथित नसेड़ी तत्व हमें अपनाने को विवश कर रही है या उदारीकरण की तरह तरल होकर दूरदराज के क्षेत्रों में फ़ैली है ? हमने तो जितना जीया बस मौज से जिया, यही भावना हमें धकेलती है उस गर्त की ओर जहाँ से निकलना मुश्किल हो जाता है| लोग कहते है-हमारा देश विश्व की रह पर चल रहा है| हम विज्ञान की हामी भरते है लेकिन अदम जी को पुनः याद करता हूँ तो पाटा हूँ कि-

आज पर्दा उठ रहा तम ताम से, अज्ञान से|

वो तुम्हारा ईश भी संत्रस्त है विज्ञान से|

और 

आइए इस तथ्य पर हम आत्मलोचन करें|

क्यों न पहले गाँव की गलियों का अवलोकन करे||

क्या भारत का नागरिक उस गाँव की गलियों की तरफ झाँककर देखता है, जहाँ नशे की हालत में पड़ा युवा अपने ही परिवार को घुन्न की तरह खा रहा है| आज भारत में शायद ही कोई व्यक्ति हो जो मुक्तिबोध की तरह गरबीली गरीबी पर गर्व करे जबकि घर में भूसी-भांग नही और महफ़िल जमाकर मजा अवश्य लेते है| हमने अपने गाँव में अनेक परिवारों को देख है, जो एक समय राजसी ठाट-बाट का जीवन व्यतीत कर रहे थे, खेती अच्छी थी, आमदनी उच्च स्तर का था परन्तु मदिरालय ने न केवल उनका घर द्वार उजाड़ दिया अपितु वह सब कुछ छीन लिया, जिसके बाल पर सीना तान कर चलते थे| आज एक भिखारी और रिक्शा चलाने वाल  उनसे अच्छी अवस्था में जीवन यापन कर रहा है| ऐसी परिस्थितियों में जागरूकता जरूरी है| आप क्या सोचते हैं?

(यह लेख 26 दिसम्बर 2012 का है।)

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