गुरुवार, 28 सितंबर 2023

शहीद-ए-आजम भगत सिंह की एकल प्रस्तुति का सामाजिक निहितार्थ

 सुखद गुरुवार 


शहीद-ए-आजम भगत सिंह की एकल प्रस्तुति का सामाजिक निहितार्थ 



भरत मुनि ने नाट्‌यशास्त्र के आठवें अध्याय में अभिनय पारिभाषित करते हुए लिखा है कि, ‘’नाटक में नट आदि के द्वारा जब सामाजिकों के सम्मुख कथा में स्थित पात्रों, उनके आचरण,  व्यवहार तथा अवस्थाओं का अनुकरण किया


जाता है वे तब वह अभिनय कहलाता है। इस आधार पर अभिनेता सामाजिकों के समक्ष विविध अर्थों की भावनाओं का प्रदर्शन करते हैं, जिसमें उसके अंगों-उपांगों की नियताप्ति होती है।


भगत सिंह की जयंती के अवसर पर संकल्प : साहित्यिक, सामाजिक  सांस्कृतिक संस्था के निदेशक आशीष त्रिवेदी आशीष त्रिवेदी द्वारा अभिनीत शहीद-ए-आजम भगत सिंह की एकल प्रस्तुति ने दर्शक दीर्घा में विचारों एवं क्रांति की अजस्र धारा प्रवाहित करके मिशाल कायम की | यह मात्र अतिश्योक्ति नहीं अपितु बलिया जैसे अकिंचन होते शहर में ऐसा कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर पर सोचने को विवश करने के काफी है | यह अभिव्यक्ति शहीद-ए-आजम के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि थी क्योंकि  इस प्रस्तुति में अभिनेता के दिनप्रतिदिन अपने अभिनय में निखार लाते हुए भावी पीढी को नया सन्देश दिया |


उन्होंने इतिहास के सूत्रों को मोतियों की माला में गूँथकर न केवल नाटक प्रस्तुति के अंगों-यथा-आंगिक, वाचिक, सात्विक, एवं आहार्य को प्रमाणित किया अपितु वस्तु , नेता एवं रस रूपकों की प्रासंगिक क‌थावस्तु प्रस्तुत की। यह स्वयं सिद्ध हैं कि-नाटक का वर्तमान स्वरूप अँधेरे ओट में छिपकर विन्यस्त भाव के लिए करुण क्रंदन कर रहा है। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर NSD सहित कुछेक संस्थाओं को छोड़ दें तो उपयुक्त कथन स्वतः सिद्ध हो जाता है |


भगत सिंह ने कहा था कि-निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम लक्षण हैं।" इस अर्थ में भगत सिंह केन्द्रित अभिनय को देखते समय जब इसे आलोचकीय मानदण्डों पर कसने का प्रयास करते है तो यत्र तत्र सर्वत्र सकारात्मक पहलू ही उजागर होता है। क्योंकि एकल प्रस्तुति के समय समग्र रूप में प्रभाव ग्रहण करना सर्वदा कठिन होता है | इसमें एक ही पात्र समय एवं परिवेश के अनुरूप आये पात्रों की भूमिका में वार्तालाप करता है | इस समय सबसे जरुरी अभिनेता के मन के भाव होते हैं, जिसे तत्क्षण परिवर्तित करना पड़ता है | इस सन्दर्भ में आशीक त्रिवेदी एक साथ दस-बीस की भूमिका के सामन्जस्य से नयी मिशाल कायम की है। वह रोलट एक्ट से लेकर 23 मार्च 1931 तक की घटनाओं को एक सूत्र में पिरोया | वह गांधी से लेकर भगत सिंह के बीच आये सभी पात्रों को बड़े ही सहजतापूर्वक जीवंत किया | इसके लिए उनकी पूरी टीम को बधाई एवं साधुवाद।


वर्तमान समय में ऐसा कहा जा रहा है कि साहित्य-संगीत के साथ नाट्‌य-परम्परा लोक की लीक से दूर होता जा रहा है। इसकी जगह अत्याधुनिक साजो- सामान से परिपूर्ण चिल्लपों की भड़‌काऊ आवाज से सुसज्जित डीजे न केवल वातावरण को दूषित कर रहा हैं अपितु ये शास्त्रीय एवं स्वस्थ परंपरा पर कुठाराघात भी कर रहे हैं। ऐसी विषम परिस्थिति में बलिया जनपद में बदलाव की  यह प्रस्तुति पुनः भगत सिंह के उन विचारों की प्रामाणिकता सिद्ध करती है, जिसमें वह कहते हैं, "आम तौर पर लोग चीजें जैसी है उसी के अभ्यस्त हो जाते हैं। बदलाव के विचार से ही उनकी कंपकंपी छूटने लगती हैं। इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना में बदलने की दरकार है। सचमुच यदि इस निष्क्रीय भावना को ऐसी प्रस्तुतियों द्वारा बदलने का प्रयास किया जाता रहा तो आधुनिक पीढ़ी में विचारों के नये-नये अवयव प्रस्फुटित होंगे और समकालीन तनावग्रस्त बचपन अपने पूर्व रूप में वापस लौटकर प्रसन्नचित मन से नये भारत का निर्माण करके वैश्विक ध्ररा पर अपनी पहचान कायम करने में सक्षम होगी |


पुन: आयोजक मंडल को अनघा बधाई|


डॉ0 मनजीत सिंह

असिस्टेंट प्रोफेसर-हिन्दी

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