गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

कोई मजबूर न होता

कोई मजबूर न होता


काश ऐसा होता कोई मजबूर न होता
क्षुधा को शांत करने से दूर न होता |
परिंदों के पर को लग जाती ऐसी पंख
यमराज भी स्वर्ग में मिलते भरे अंक |

काश ऐसा होता कोई मजबूर न होता
निराले सपने देखने से वह दूर न होता
धरती की चादर पड़ती न कभी छोटी
मजमून होकर होती नहीं खोटी |

काश ऐसा होता कोई मजबूर न होता
खेत में किसान बीज से दूर न होता
उसकी फसल काटकर दूजा न जाता
आराम से सोता न कभी पछताता |

काश ऐसा होता कोई मजबूर न होता
शहर भी उस गोंव से कभी दूर न होता
बिल्डरों के नखरे उसे रुलाते न कभी
हर घर से खुशियाँ जाती न कभी |

२५/०४/१३

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