चार च...म्.....म.....चें...!!
(चम्मच तेरे रूप अनेक )
मनुष्य के लिए भोजन से भी बढ़कर चम्मचों की आवश्यकता है | इन चम्मचों को हम
तरह-तरह से प्रयोग में लाते हैं | इनके चार प्रकार है-बनाने वाला, खिलाने
वाला, खाने वाला और पिलाने वाला |(Making, Serving, Eating And Feeding)
चारों एक परिवार की तरह सहयोग करती रहती हैं | इनकी उपस्थिति ही आधुनिक
व्यंजनों के स्वाद को बढाती ही नहीं अपितु भरपेट भोजन कराती
हैं | जब हम खाना(सब्जी) बनाते हैं तब उस समय आलू, प्याज, मिर्चा, धनिया,
हल्दी, लहसून, अदरख, आदि को मिलाकर तेल में अच्छी तरह से भुनते हैं, इस समय
यदि अपना हाथ लगाये कि जला अतः पहले चम्मच की अनिवार्यता महसूस होती है |
बेचारा गरम तेल में किस तरह घूमते-घूमते जलते हुए स्वादिष्ट सब्जी, घी,
मुर्ग-मुसल्लम बनाता है | इसका कष्ट देखते ही बनता है | आखिर मेहनत का फल
इसे मिलता है और वीम वार से नहा धोकर (नया कपडा पहनकर) दूसरा रूप ले लेता
है | यहाँ से दूसरे चम्मच की उत्तपति होती है | इसका काम भी कम महत्वपूर्ण
नहीं है | बड़े डायनिंग टेबल पर रखे खाने को परोसने में यदि यह न रहे तो लोग
कहेंगे......जा..जा कितना बड़ा बनता है | हाथ से परोसता है |(गाँवों में तो
किसी के परोजन पर हाथ से ही परोसते थे)| तीसरा खाने में आधुनिकता का एहसास
कराता है | यदि हम हाथ से ही खाने लगे तों तथाकथित बड़े ओहदे वालों के बीच
जघसाई जो होने लगेगी | अंतिम का योगदान बच्चों को दूध पिलाने में किया जाता
है | आखिर छोटे मुहँ के लिए कम दूध की ही जरूरत होती है | यदि बनाने वाले
या खिलाने वाले से बच्चों को दूध पिलायेंगे तो वह बच्चा कैसे पिएगा | थोड़े
में ही संतुष्ट होकर वह बच्चा चैन की नींद सोता है | खोता तो कुछ नहीं पाता
ही है | इन्ही चम्मचों की कृपा दृष्टि है कि मानव समुदाय बचा अन्यथा
लोकतंत्र तो समाप्त ही हो जाता | लोकतंत्र को बचाना है तो इन्हें घर में
सजाना है, एक बात है हर घर में जाने से ये परहेज भी करते हैं क्योंकि ये
कहते हैं कि-देखो भाई हम तो ठहरे संयमी, आत्मसंयम ही हमारा अस्त्र है अतः
हमें वही बुलाओ जहाँ शाकाहार व्यंजन बनाना हो, खिलाना हो , पिलाना हो (यह
बात सायलेंट हैं क्योंकि इसे वह कान में धीरे से कहते है-यदि सहूलियत न हो
तो मांसाहार भी गलत नहीं लेकिन इसके लिए मुझे राख जलाकर स्वच्छ मत करना
)खैर इनकी महिमा अपरम्पार है | इसीलिए तो यह कहना मुनासिब होगा-
भर दे जीवन में रंग एक
दूध पिलाकर हमें सुला दे
बडो-बड़ों को पिघला दे
आलू-प्याज-टमाटर-कटहल-परवल
धनिया-मिर्ची-हल्दी को भी साथ मिला दे
तरकारी बनने के बाद सबको स्वाद चखा दे
खाने वाले को भी प्रेम से खिला दे .........!!!
चम्मच तेरे रूप अनेक........................!!
भर दे जीवन में रंग एक......................!!
२५/०४/१३
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