शांत समीर
शांत समीर ने
जलती धरती की कान में
धीरे से कहा-
भाई ! शीतल मंद बयार
लू के थपेडों पर पड़ने लगी भारी |
धूल भरी आँधी-तूफ़ान में
तुम्हारी छाती पर कर रहे कलरव
उड़ते कण आँख की किरकिरी बन
आवास गवाँकर हो रहे मजबूर
तडपकर नव दुनिया को खोजते
अपना नया आशियाना
यहाँ सब मिल एकजुट होकर
वैर-भाव को आसव की तरह पीकर
एक छत के नीचे आने को मजबूर ||
२० १३ /०४/२४
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