मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

चलते चलो

चलते  चलो

जब तक चलोगे, चलते चलोगे |
धूप और छाँव में, खूब चलोगे |
प्रकृति के मंजर में ख़्वाब देखोगे |
समाज के आइने में रूप देखोगे |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण

बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण बेहतरीन पल : चिंतन, चुनौतियाँ, लक्ष्य एवं समाधान  (सरकारी सेवा के बीस साल) मनुष्य अ...