मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

कैमरे के सामने

कैमरे के सामने


दिन के उजाले में
कैमरा भी शर्मा जाता है
फ्लैश चमक गया तो ठीक
अन्यथा
प्रकाश की गुंजाईश नहीं |
भौहें ताने काली अंधेरी रात में
उन्नयन होकर वह
एकटक ताकता रहा-
कहीं ऐसा न हो कि
काल के आगोश में
दोमुहा चरित्र उतार
एक प्रतिबिम्ब धुँधली सी लेकर
ऐसा चित्र सामने आये
छाया-प्रतिछाया के संघर्ष में
अनवरत सुघर बनाने का प्रयास
उसे बंधनमुक्त करके भी
उसी दूधिया धारा में बहने को उतारू
बहता चला गया |
उस अनंत आकाश की ओर
जहाँ नील वर्ण की असीमित आभा दिखे
समुद्र के उस छोर को भी
कैमरे में कैद करने के चक्कर में
स्वर्ग की वजाय नरक कुंड में भी
यमलोक का एहसास दिलाता
कैमरे के सामने आता |

०१ अप्रैल १३ को

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