एक जिंदगी काफी नहीं
कुलदीप
नैयर जी ने Beyond the lines : an autobiography (एक जिंदगी काफी
नहीं-आजादी से आज तक के भारत की अन्दरूनी कहानी ) में भारतीय लोकतंत्र का
कच्चे चिठ्ठे को उजागर किया है | इसके साथ ही उन्होंने अपने जीवन के अनछुए
पहलुओं को भी सार्वजनिक किया है | एक स्थल पर (अध्याय ४, गिविंद बल्लभ पन्त
: चुनौतियों का दौर , पृष्ठ-१०५ ) उन्होंने अमरीकियों की खुले दिन से
प्रशंशा की है-उनका कहना हैं कि-"अमरीकी बड़े खुले
दिल के लोग भी हैं | नार्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में दस महीनों के अपने
प्रवास के दौरान मुझे काफी अनुभव हुआ | एक अमरीकी दंपत्ति ने मेरी
जिम्मेदारी लगभग अपने ऊपर ले ली थी | हर शनिवार को पति या पत्नी अपनी कार
में मुझे कैम्पस से लेने आ जाते, मुझे खाना खिलाते और फिर वापस छोड़ जाते |
रात के शानदार भोजन के बारे में सोचकर मैं कई बार दिन में खाना ही नहीं
खाता | इससे मेरे पैसे बच जाते | मैं बड़ी मुश्किल से अपनी पढाई का खर्च उठा
पा रहा था | मैं कई तरह के पार्ट टाईम काम कर रहा था -जैसे कि घरों के
बगीचों की घास काटना, होटलों में वेत्गिरी करना, सर्दियों में शिकागों की
ऊंची बिल्डिंगों की खिड़कियों के शीशे साफ़ करना वगैरह | मैं घर से पैसे नहीं
मंगवा सकता था, क्योंकि मेरे और मेरी पत्नी के खाते में सिर्फ १२०० रूपये
जमा ठे और मेरे बूढ़े माता-पिता बड़ी मुश्किल से गुजारा कर रहे थे | यह कहना
बिलकुल सही होगा कि यूनिवर्सिटी की पढाई जारी रखने के लिए मुझे बहुत से
पापड़ बेलने पड़ते थे | कभी-कभी मुझे एक पाँव और पानी पर गुजारा करना पड़ता था
| फिर भी इसमें एक अलग तरह का मजा था | पूरे कैम्पस में कोई भी मुझसे टेक
बर्तन नहीं धो सकता था |" नैयर जी के जीवन में आये उतार-चढ़ाव से मुझे अपने
जीवन की भी याद आती है | एक अंतर है-हम लोगों के लिए इलाहाबाद सी अमरीका
सरीखे था | उस समय की एक-एक बाते एक फीम की तरह सवतः चलने लगती है |
दूसरी तरफ नैयर जी ने अमरीकी नीतियों और उनके मनसूबे को नार्मन कजिन्स के माध्यम से हमारे सामने रखा | पहली बात तो यही है कि-अमरीका ने भारत के बटवारे में ब्रिटेन की मदद की थी | दूसरी महत्वपूर्ण बात यही है कि-नैयर जी ने जब शिकागों में हुई एक प्रेस कांफ्रेस में एक उद्योगपति से पूछते है कि-अगर हथियारों की मांग खत्म हो गयी तो अमरीकी अर्थव्यस्था का क्या होगा | इस उनका जवाब था, " हम अपनी इंडस्ट्री को जिन्दा रखने के लिए लड़ाईयों तलाशते रहेंगे |" उनकी यह बात सही साबित हुई | अमरीका आज भी अपनी इंडस्ट्री को जीवित रखने का भरसक प्रयास करता जा रहा है | वह चाहेँ ईराक हो या अफगानीस्तान या कोई और | कुल मिलाकर यह पुस्तक वास्तव में नैयर की साहित्यिक-ऐतिहासिक खोज में मील पत्थर है |
दूसरी तरफ नैयर जी ने अमरीकी नीतियों और उनके मनसूबे को नार्मन कजिन्स के माध्यम से हमारे सामने रखा | पहली बात तो यही है कि-अमरीका ने भारत के बटवारे में ब्रिटेन की मदद की थी | दूसरी महत्वपूर्ण बात यही है कि-नैयर जी ने जब शिकागों में हुई एक प्रेस कांफ्रेस में एक उद्योगपति से पूछते है कि-अगर हथियारों की मांग खत्म हो गयी तो अमरीकी अर्थव्यस्था का क्या होगा | इस उनका जवाब था, " हम अपनी इंडस्ट्री को जिन्दा रखने के लिए लड़ाईयों तलाशते रहेंगे |" उनकी यह बात सही साबित हुई | अमरीका आज भी अपनी इंडस्ट्री को जीवित रखने का भरसक प्रयास करता जा रहा है | वह चाहेँ ईराक हो या अफगानीस्तान या कोई और | कुल मिलाकर यह पुस्तक वास्तव में नैयर की साहित्यिक-ऐतिहासिक खोज में मील पत्थर है |
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