अदम गोंडवीका प्रहार
अदम गोंडवी की चन्द पंक्तियाँ कितनी सटीक है, जिसके एक-एक शब्द उस व्यस्था पर हथौड़े से प्रहार करती हैं, जहाँ सुख-चैन एक विशेष वर्ग तक सीमित है | कहने को उदारीकरण १९९१ से आया लेकिन यह मूल से अलग ही राग अलापता रहा-
ताला लगा के आप हमारी जबान को |
कैदी न रख सकेंगे जेहन की उड़ान को
बंगले बनेंगे पालतू कुत्ते के वास्ते,
हम आप तरसते ही रहेंगे मकान को |
जब तक रहेंगे सेठों के चेले जमात में,
तब तक खुशी नसीब न होगी किसान को |
घर में गिनेंगे आप तो पंजे से कम नहीं,
दफ्तर में टांगते हैं 'तिकिने निशान को |(धरती की सतह पर)
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