सोमवार, 13 मई 2013

गजल

गजल  

1

दिल के मंदिर में गुलाब की सुगंध आती है
हर नाचीज को भी दुआ-सलाम करती है
आते हैं चढावे हर रोज धूप बत्ती के संग
पेट नहीं भरता औ भूख व्याकुल करती है ||

.....डा.मनजीत सिंह......१३/०५/१३


2


काश मेरे दर्द की भी कोई दवा होती, दूजा दुःख घूँट पीकर मस्त होता |

3


घरिनी घर को स्वर्ग बनाती, तभी तो वह इठलाती है ।
कभी-कभी चंडी बन जाती, तब तो बड़ा सताती है।।
7.6.13
डॉ. मनजीत सिंह
 


4


मन के मंदिर में प्रेम का दिया जलता है
दिन-रात कल्पना का प्रसाद चढ़ता है
समय-समय पर दिल का घंटा बजता है
यही नियमित क्रिया सुखद फल देता है।
9.9.13
डॉ. मनजीत सिंह


5


जब भीगी पलकों से हम  कोई नाम लेते है,
भूल जाता दुनिया औ उस पर जान देते हैं।
9.6.13
डॉ. मनजीत सिंह
 
 


6


उम्र के इस दहलीज पर आगे बदने को सोचता हूँ |
नींद भी नहीं आती और जमाना सोने नहीं देता ||
डा. मनजीत सिंह


11.06.13
  

7


शिखर की ओर देखकर मुझे सुकून नहीं मिलता,
उस मंजिल पर पहुँचकर ही मन संतुष्ट होता है।

11.6.13

डॉ. मनजीत सिंह
 


8


कभी-कभी तो सोचता हूँ.......काश् मैं भी अमीर होता
रोटी-कपड़ा-मकान से ऊपर...चाँद-तारों के करीब होता।

12.6.13

डॉ. मनजीत सिंह


 
 

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