काश ! तुम पास होती
1
माँ दूर होकर
क़यू तड़पा रही हो
तारों से दो चार होकर
अपने को प्रकाशित करके
मन को बैचैन करती हो.
जब से गयी हो तुम
अभागा बन भटक रहा
कही ठौर नही
न आचल की छाव मिला
न मिली ममता. . . . . .!
जीवन हुआ बूढा
तन गयी पीठ
रहा नही कोई सहारा
लकडी का काठी भी
कर दिया बेसहारा मुझे. . .!
आज बहुत याद आ रही
मन करता है खूब रोऊ
अपना दुख देकर
शात कर लू अपना जीवन
करता हू शत शत नमन. . !
2
माँ तू धरती का बोझ उठाती
लाल-बाल-गोपाल को भी
पालने में सुलाती........!!
3
मम में वह ममता कहाँ
जो ममता है माई में
माँ का सनेह पुत का नेह
सिमटा उसमें ससेनेह
जो ममता है माई में
माँ का सनेह पुत का नेह
सिमटा उसमें ससेनेह
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