सोमवार, 13 मई 2013

बागी

बागी


पेड़-पत्तों से बागी होकर
नयी ऊर्जा भर देता
आजाद कर आक्सीजन को
कार्बन को निमंत्रण देता
साँस लेते ही चिंतामुक्त हो जाता ||

बार-बार गाता-दुहराता
मानव जाति को ठेंगा दिखाता
अपने सफ़ेद खून से
सींचता चला जाता
लिखता इतिहास विनास का ||

एक समय था जब

धरती स्वर्ग बनी
आजादी की लड़ाई को भी
महसूस किया था बागियों ने
बयालीस को जोड़ा इतिहास में
आज बस यादें शेष बची ...!!

गान्ही बाबा भी तो बागी बन
फूँक दिए बिगुलबयालीस में
करो-या-मरो का नारा देकर
हिला दिए थे फिरंगियों की नीव
जाना पड़ा जेल भी उनको ...!!

किसान-मजदूर सहते-सहते
बन गये बागी हो गया काम
रूस-भार में हो गया नाम
मार्क्स-प्रेमचन्द निराला-नागार्जुन ने
क्रान्ति की ज्वाला भी जलाई |

दिल्ली की दरिंदगी पर
भारतीयों ने की बगावत
हो गयी छुट्टी बड़े-बड़ों की
नई चेतना की धारा से
सराबोर अब हुई दुनिया ..!

लाल-सलाम करते-करते
नक्सल भी पर्याय बना अब
बिनाश की लीला देख वह
बना परिन्दा कट गया पंख
नहीं रहा अब कोई शंख ||

रोज बेतवा बहती थी अब
सूख गयी उसकी धारा
जल की रानी थी कभी वह
हुई सयानी बनी दीवानी
सूख गया उसका पानी ||

....डा.मनजीत सिंह.....१३/०५.१३

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