सपने खूब देखो....यही हमारा कर्तव्य है।
लेकिन मूर्खों की संगति से बचो......
यही जीवन का यथार्थ है...........
अलविदा जोरई....
पुरानी संस्था के शिष्यों के निमित्त सन्देश.💐💐
जीवन अमूल्य है । उसे भरपूर जीना है । कभी-कभी मन के किसी कोने में क्षणिक विषाणु जीवन को झकझोरते है। लेकिन हमें उन्हें या तो कोरोना की तरह आत्मसात कर लेना चाहिए या उसे परिधि पर ही रहने देना है । क्योंकि ये विष्णु की अवतार समझकर आपका शोषण ही करेंगे । वह कोई भी हो सकता है । हो सकता है कि-वह कोई सगा हो, हो सकता है वह कोई करीबी हो, हो सकता है वह कोई अपनों जैसा हो । यही कारण है कि-जीवन बहुमूल्य है । इसे भरपूर जीना है । हमें सपना देखना है लेकिन अपनी नजरों से ही उसे कारगर करना है । जीवन में बहुत ऐसे मिल जायँगे, जो अपनी नजरों से सपनों की आगोश में बाँधने का प्रयास करेंगे लेकिन इन बहुरूपिये मुखौटे वाले लोगों से सचेत रहना है । इस संसार में इनकी जमात बहुत बड़ी है । सबसे बड़ा अखाड़ा तो शिक्षा के स्तर पर मिल जायेंगे । उसमें बाजी वही मार सकता है, जो वास्तव में बाजीगर हो । कहने का अर्थ है कि उसके पर समस्त कलाओं का सामंजस्य हो ।
इस बहुदर्शी समाज में हमारे लिए तो हमारे छात्र ही प्रेरक रहे हैं । हम कहीं भी रहें उनकी स्मृतियाँ हमें जरूर झकझोरती है । हमारे साथ सबसे बड़ा खतरा यही रहा है कि- मैं जितना करीब अपने छात्रों के रहा उससे कहीं शतांश भी अपने हमराहों से नहीं जुड़ पाया । यह हमारी मजबूती भी है और कमी भी । मजबूती इस अर्थ में है कि-हम अपने विषय से इतर नहीं होने पाये, जिसका प्रभाव बिलासपुर के नवोदय में कक्षा बारहवीं के कुल छः सत्र के छात्रों में दिखायी पड़ता है । आज सुकून इस बात की है कि आज उन्हीं में से एक शिष्य का अचानक फोन आया और उसने बड़े गर्व के साथ हमारे साथ शोध कार्य से जुड़ने पर आभार जताया । लेकिन जोरई तो एक उदाहरण है । जबकि हमें आश्चर्य तो तब होता है जब इस कथित दोयम दर्जे के जन भी सहजता को ही कमजोरी मान बैठते हैं ।
मनुष्य का स्वभाव सहज हो सकता है, व्यक्ति नहीं
। क्योंकि निदा फाजली के शब्द इसकी स्वीकृति नहीं देते हैं-
एक व्यक्ति के भीतर दसबीस आदमी
एक को देखना दस बीस को देखना है।
अब आप स्वयं ही उन दस बीस चेहरों को पढ़ने में समय जाया न कीजिए क्योंकि बरगद जैसे विराट जीवन की हरेक टहनी जमीन से जुड़कर पुनः पेड़ को नया जीवन प्रदान करती है । बहरहाल आज ऐसे ही एक होनहार शिष्य का फोन आया तो स्मृतियाँ सजग होकर उछाल लेने लगी । इन्हीं को मैं अपनी सबसे बड़ी जागीर मानता हूँ, जिसके बल पर आज गर्व से अपना सर उठाकर जीने के लायक बन पाया हूँ ।
कुल मिलाकर यह पुनर्जन्म है । शिक्षा का, समाज का, व्यक्ति का, संस्था का, ज्ञान का, अज्ञान का, अंधकार का, प्रकाश का.....इसे हम क्रांतिकारी परिवर्तन भी कह सकते हैं । क्योंकि इस धरा पर शायद ही कोई व्यक्ति है, जो सत्रह साल में अपने विषय को बचाकर उस स्तर का रखा हो, जहाँ से रोजगार की शुरूआत होती थी । नवोदय में तो शायद असम्भव है । नवोदय तो हमें भरसक सेना के जवानों की तरह बनाने के लिए तमाम हथकण्डे अपनाता है और बहुत कुछ बना भी लेता है । लेकिन सेना में नौकरी के बाद एक सैनिक भी गौरवान्वित होता है कि-कम से कम देशभक्ति के लिए मातृभूमि की रक्षा में वह समर्पित रहा । लेकिन दूसरी तरफ नवोदय रेजिमेंट के सैनिकों की दशा जगजाहिर है । लेकिन यह संस्था छात्र हित में सर्वोपरि है । परन्तु यह भावना तब पनपती है, जब वह छात्र नवोदय से मुक्त होता है । गनीमत तो यही है कि-नवोदय के पास हैदराबाद संभाग है । अन्यथा...राम ही मालिक है ।
समय बहुत तीव्र गति से भाग रहा है । ऐसा प्रतीत हो रहा है कि-अभी तो हाल ही में हमने जोरई में प्रवेश किया था लेकिन देखते-देखते कुल चार वर्ष बीत गया । अब क्या कहें-कोरोना के आये छः माह होने को है।
कोरोना काल ने बहुत ही नया अनुभव दिलाया । इस दौरान तरह-तरह के लोग मिले-यथा- निरंकुश-सहज-सजग-भ्रष्ट-धोखेबाज-ईर्ष्यालु-दयालु-झगड़ालू-चालू-धूर्त्त-मूर्ख-अनपढ़-स्वार्थी-जुगाड़ू..लेकिन इनमें कुछ बड़े ही सहज स्वभाव के लोगों का सानिध्य भी मिला । कहते हैं-बड़े लोग (तन-मन-धन से बड़े) बहुत सहज होते हैं । इनका स्वभाव एक जौहरी की तरह होता है, जिनका काम केवल सोने की चमक को बढ़ाना ही होता है । इनके प्रभाव ने हमें नवजीवन भी मिला जिसकी चर्चा इस नवोदय पुराण वार्ता में संभव नहीं है ।
अंत में अपने बहुत प्यारे छात्र-छात्राओं के लिएमेरा सन्देश इस प्रकार है-जीवन में जो भी कदम बढ़ाना है । उसके हरेक कदमों संग अपने परिवार का स्मरण अवश्य करना है । क्योंकि आपके माता-पिता ही वर्तमान समय में प्रथम और अंतिम गुरू है । अन्य तो केवल व्यवसायिक हैं । उनके लिए शिक्षा भी एक व्यवसाय है । जबकि आपके माता-पिता की सोच इनसे बहुत ऊपर है । आप हमेशा उनके चित्र को हृदय में उतार कर रखें । और दूसरी बात अपने ज्ञान का विस्तार करें अर्थात बावड़ी से बाहर निकलकर सोचें । तभी आप सफल हो सकता हैं ।
💐💐आप सभी के उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाओं के साथ खूब आशीर्वाद ।💐💐
डॉ.मनजीत सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर-हिन्दी
कुँवर सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया, उत्तर प्रदेश
संपर्क-खोजने पर मिल जायेगा ।
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