शुक्रवार, 18 मई 2012

चमकते तारे और हम

 चमकते तारे और हम   

डा॰ मनजीत सिंह

काली अंधेरी रात में
तारे समूह बनाकर 
आपस में कुछ बाते करते
कुछ मद्धिम तो कुछ चमकीले 
धरती पर मानव को 
अपने प्रकाश से जीवन को 
आगे बढ़ाने की सीख देते!
इन तारों की जीजीविषा को देखकर 
हैरान होता है मनुज 
आंधी के थपेड़ों को सहते हुए,
बारिस और वर्फ की बौछारों की 
मोटी  चादर के भीतर

अदम्य जीजीविषा लिए 
इंतजार करते हैं,
तब तक जब तक कालिमा
समाप्त न हो जाये 
और
मुक्त जीवन की इसी आकांक्षा में
हम भी अनुसरण करते हुए 
जीवन पथ पर  आगे बढ़ते हैं 
बढ़ते जाते हैं, 
तभी धीरे-धीरे अंधेरा खतम 
होकर होता है उजाला 
जीवन में होने लगता है 
प्रात:कालीन बेला का आगमन 
जतन से चलने लगते हैं
अपने ही बनाए रास्ते पर 
रम जाते हैं उसी तारों की तरह .........

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