मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

क्या दयानंद पाण्डेय जी का यह संग्रह फेसबुक के आतंरिक परिदृश्य को उजागर करने में सक्षम हैं?

http://www.jagran.com/sahitya/book-review-10000317.html
जिन पाठकों ने उनकी कहानियां और किताबें पढी हैं, वे जानते होंगे कि दयानंद पांडेय लिए लुकाठी ह

ाथ परंपरा के वाहक हैं। उनकी रचनाधर्मिता झकझोरती ही नहीं, पूरी ताकत से झोर भी देती है। उनके नयेकहानी संग्रह फेस बुक में फंसे चेहरे में कुल आठ कहानियां हैं और अपने-अपने स्तर पर सभी पात्रों के ईमान की परख पूरी ईमानदारी से करती हैं। पुस्तक की पहली कहानी हवाई प˜ी के हवा सिंह राजनीति के खोखले वादों, उडनतश्तरी नेताओं और शोहदों के समीकरण की पडताल करती है तो दूसरी कहानी (जो इस पुस्तक का शीर्षक भी है) सोशल नेटवर्रि्कग की खोखली दुनिया का जायजा लेती है। यहाँ स्टेटस लाइक करने वाले लोगों की तो भीड है लेकिन जब कथानायक सरोकारों की लाइव बात करने लगता है तो फॉलोअर्स की यही जमात उसे आउटडेटेड करार देती है। सूर्यनाथ की मौत आधुनिक पीढी की बदलती प्राथमिकताओं में अर्थ खोती आजादी की दर्दनाक दास्तां बयान करती है तो ऑफिस पॉलिटिक्स में फंसी एक जीनियस की विवादास्पद मौत क्यूबिकल रोमांस की त्रासद परिणिति है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कहानियों के विषयों के बाडे तोडते हुए (बर्फ में फंसी मछली और मैत्रेयी की मुश्किलें) दयानंद पांडेय कई बार शब्द तथा समाज की वर्जनाओं को भी ध्वस्त करते हैं। चर्चित पुस्तक- फेसबुक में फंसे चेहरे दयानंद पांडेय/ जनवाणी प्रकाशन प्रा. लि., गली नं.9, विश्वास नगर दिल्ली-32 मूल्य- 350 रुपए मनीष त्रिपाठी

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