रविवार, 23 दिसंबर 2012

चारमीनार से

हैदराबाद का चार मीनार तीन मंजिला है, जिसमें आजकल केवल पहले मंजिल तक ही सार्वजनिक लोगों की पहुँच है, लेकिन इस ऐतिहासिक इमारत को नजदीक से देखने पर ऐसा लगा कि सरकार केवल ५ रूपया वसूल करके ही संतोष कर ले रही है| इसकी सीढ़ियों से ऊपर चढ़ते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा था कि हमारी साँसें थम जायेंगी| ज्यों-ज्यों हम ऊपर चढ़ते जा रहे थे त्यों-त्यों दीवालों पर प्रेमी-प्रेमिकाओं द्वारा अपनी पहचान बनाये रखने के प्रमाण स्पस्ट दिखाई दे रहे थे | कहा जाता है कि इसकी तीसरी मंजिल पर ४५ लोग एक साथ नमाज पढ़ सकते थे| एक बात जोर देकर कह सकता हूँ कि निजाम के पास अकूत संपत्ति थी | मेरे एक मित्र ने बताया कि - एक बार प्. मदन मोहन मालवीय बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण के समय निजाम के पास पैसा मांगने गये| उस समय निजाम ने उन्हें वापस भेज दिया तब वह हैदराबाद में गरीबों से भीख मांगने लगे| इसकी सूचना जब निजाम को लगी तो उसने मालवीय जी को बुलाया और पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहें हैं| तब उन्होंने उत्तर दिया कि- आप भले सहयोग न करें लेकिन हम यहाँ से जाकर यह तो जरूर कहेंगे कि हैदराबाद की जनता ने सहयोग किया| इस पर निजाम ने उन्हें सहयोगस्वरूप काफी धन दिया|

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