23 मार्च को इलाहाबाद से-
वह निहारती रही
मैं अनजान, सुनसान
अपनी तान में हुआ
बेजान |
करवट बदलकर देखा-
अचकाचाये-सकपकाकर
मायूस
अभी भी टाक रही थी
एकटक
जब मेरी बारी आयी
देखते ही
सकुचाई-शर्मायी
लाल -गेहुंयें रंग
जैसे
चेहरे पर क्षणिक समय
के लिए
एक विस्मित मुस्कान
छायी |
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