गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

महामारी


अकाल के बाद यह
रोग बनकर आती है,
सताती है, जलाती है
रूलाती है, सुलाती है |
दिन को भी रात और
रात को भी दिन बनाती है |
कार्य दिवस में बड़े बाबू को
चमत्कार दिखलाती है |
हाय ! यही महामारी उसे
स्वप्न में भी उठाती है |
गिरता हुआ व्यक्ति भी
ओहदा का ध्यान नहीं रखता
अपना ही पेट भरता है
भरता चला जाता है |
दूसरों का निवाला निगलते-निगलते
राक्षस ही बन जाता है |
यह वही महामारी है जो
सभ्यता को कहीं का नहीं छोडती
शिक्षा में लग जाने से
इंजीनीयर-डाक्टर के फेर में
बेकारी को ही बुलाती |
ओह.....! यही महामारी उसे
असमय बेरोजगार ही बनाती |
गावो-शहरों के बीच
के भेद को भी निताती है
जाति-पात से ऊपर उठाकर
इंसान कहलाने पर भी
विवश उसे कराती है |

०२/०४/२०१३

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