चल अकेला चल
सूर्य कई लालिमा
शरीर को मन को
शुद्ध करती हुई
आगाह करती चलती
जीवन में राह दिखाकर
यही आह्वान करती
अब नहीं तो कभी नहीं
चलते चले जा......!
उस शिखर की ओर
जहाँ प्रकृति का मनोरम दृश्य
आकर्षण की मुद्रा में
उन्हीं लक्ष्यों को
साथ लिए है
जिसकी आकांक्षा वह
जन्म से करता आया
युवा काल में पछताया
प्रोढ होकर सुलझाया ||
१३ अप्रैल १३
शरीर को मन को
शुद्ध करती हुई
आगाह करती चलती
जीवन में राह दिखाकर
यही आह्वान करती
अब नहीं तो कभी नहीं
चलते चले जा......!
उस शिखर की ओर
जहाँ प्रकृति का मनोरम दृश्य
आकर्षण की मुद्रा में
उन्हीं लक्ष्यों को
साथ लिए है
जिसकी आकांक्षा वह
जन्म से करता आया
युवा काल में पछताया
प्रोढ होकर सुलझाया ||
१३ अप्रैल १३
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें