घूमता आईना
धूप छाँव में
सूर्य की किरण पडती है
घुमते आईने पर |
घूमते हैं जड़, जंगल, जमीन
घूमते रहते हैं जीव
नश्वर को अनिष्ट करके
हो जाते हैं निर्जीव |
चक्रण में गाँव की झोपड़ी
महलों की सीमा से दूर रहते
शूट-बूट और कंठ लंगोट
घूमते-घूमते फंस जाते
उलझ कर कभी गिर जाते
उठने की कवायद कर
गर्त में फंस जाते ||
४ अप्रैल २०१३
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