शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

टहनी

टहनी

तरूवर बीच लटकी टहनी को देख
सहसा जोर-जोर से आवाज आयी
बचाओ ! बचाओ ! बचाओ ! बचाओ !
बहते खून की सफ़ेद धारा भी तो
नदी की धारा बन हुंकार मार रही
रोको ! रोको ! रोको ! रोको !
विज्ञान में यहाँ आश्रय मिलता है
आक्सीजन को ! आक्सीजन को !
साँस लेती है दुनिया मजे से बेफिक्र
मौज करते हैं लोग बेधड़क, बेमरौवत
पवनदूत बनकर शायद कोई आ जाय
उबारकर नया पुनर्जीवन देने उसे
अन्यथा एक दिन ऐसा आएगा
मिट जाएगा संसार नहीं बचेगा जन ||

४ अप्रैल २०१३

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