बुधवार, 3 अप्रैल 2013

चुनावी  जनाजा 

चुनावी जनाजे पर
बजने लगा है बाजा
घोर-अभिशाप बन गयी
जनता जनार्दन की माया |
इनकी  एक खास अंदाज
बंधन  में बांध  जाती  है
गुड  चीनी खाकर भी
वोट उन्हें ही देती है |
पुष्प की बौछारें होती
लगती उन्हें यह धान की बाली |
नाम-अनाम सब ही खाते
सिक्कों  से ही मान जाते |
देते दुहाई अपने कार्य की
कहते बड़े ओछे भाव से
भाई ! जनाजे पर एक ओट
स्वर्ग कर देगा मेरा जीवन |
लेकिन-ठलुवा टपक गया बीच ही
कहने लगा सुनो भाई साधो-
अब तक तुमने किया ही क्या?
मनरेगा के नाम पर
बिकते रहे  गाँधी बाबा हैं-
मनमोहन  की मोहक अदा
लगी नहीं कभी निराली
उदास भाव से करती रही
साल दर साल केवल गिनती |
लालू चालू हो चले हैं
कितना चारा खाकर भी
जनता को हारते चले हैं |
वह भी लगे रहें पंक्ति में
फूल डालने उसी जनाजे पर |
सहसा  उठ खड़ा हुआ वह
दौड़ भागे सभी अभागे |
३ अप्रैल २०१३





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