दुःखती रग एवं चुनावी हलचल
अभी बिल्कुल अभी
मैं चुनावी चर्चा से अक्सर दूर ही रहता हूँ । क्योंकि न मेरा विषय राजनीति विज्ञान रहा है और न ही राजनीति में अपनी रूचि है। हाँ ! इतना अवश्य कह सकते हैं कि संविधान की समझ मुझे भी है । यह अपना स्वार्थ है । इसी कारण आज हमने अपने दूध देने वाले को बैठा लिया और इधर-उधर की बाते करने लगा । अचानक मैं उनके क्षेत्र की चर्चा कर दिया ।
उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा-सर, मैंने उन्हें(मंत्री) एक दिन ठीक से समझा दिया और पूरी क्लास ले ली ।
मैंने उत्सुकतावश पूछा । क्या हुआ था ?
उसने पुनः क्रोधित होकर कहा -सर, उस दिन वह हमारे घर के पास आये और कहे कि हमे वोट दीजिएगा ।
मैंने कहा-प्रभु! आप प्रधान के लिए भी वोट माँगने आये थे और आज अपने लिए भी माँगने लगे । लेकिन अफशोस है कि न ही प्रधान ने ही नाली बनवाई और न आप ही विगत पाँच सालों में कहीं दिखे । अब आप ही बताते चलें कि किस आधार पर आपको काबिल समझूँ ।
इतने में वह हड़बड़ाए हुए अपने मातहतों से कहा-अरे! इनका नाम नोट कर लो और आज ही काम लगाओ । बस क्या कहने । आनन फानन में कागज घूमने लगा लेकिन नाली नहीं बनी । इतने में ही वह कहने लगे-देखिये सर । हमें उन लोगों से क्या काम । हम तो उन पचास-साठ लोगों को जानता हूँ जो मुझे कभी भी किसी भी परिस्थिति में मेरा सहयोग कर सकते हैं ।
और ठठाकर हँसने लगा । उसकी हँसी में वर्तमानकालीक राजनीति पर करारा प्रहार नजर आ रहा है । उसके सुर्ख चेहरे और गीली आँखों ने पीड़ा और ग्लानि को उजागर कर दिया । इतने में वह शेष बातें दस के बाद कहने की नसीहत के साथ तुरंत चल दिया ।
यदि आपको किसी नेता में करुणा दिखे उसे ही मत दें ।
यह केवल एक व्यक्ति मन की बातें नहीं अपितु यह एक सार्वजनिक समस्या है, जिनमें से अधिकांश दिखती नहीं । बहरहाल आप अपने मत का प्रयोग अवश्य करें । मत अपने मन से करें । किसी के बहकावे में कदापि न आयें । आपके साथ ही आपके देश का विकास सम्भव है ।
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