साझा सुख
भगत सिंह : एकल प्रस्तुति एवं पुस्त
क विमोचन
जबसे सुना है मरने का नाम जिन्दगी है
सर से कफन लपेटे कातिल को ढूँढ़ते हैं।। (साभार)
भगत सिंह के यह शब्द हमें झकझोरने लगते हैं । आज की शाम प्रसिद्ध रंगकर्मी आशीष त्रिवेदी की एकल प्रस्तुति ने दर्शकों के ऊपर स्थायी छाप छोड़ी अपितु अभिनेय तत्वों के द्वारा रंगमंच की प्रासंगिकता को पूर्णतः सिद्ध किया ।
भरत मुनि ने अपने नाट्य शास्त्र में स्पष्टतः उल्लेख किया है कि-नाट्य को अभिनय ही पूर्ण करता है । दूसरे शब्दों में कहें तो कह सकते हैं कि-किसी भी नाटक की उपादेयता अभिनय के द्वारा रंगमंच पर सिद्ध होती है । क्योंकि यह मुख्य प्रयोजन को प्रयोग की ओर ले जाता है । इस आधार पर भरत मुनि ने चार प्रकार के अभिनय की चर्चा अपने नाट्यशास्त्र में की है-यथा-
1. आंगिक अभिनय
2. वाचिक अभिनय
3. सात्विक अभिनय
4. आहार्य अभिनय
इन्हीं भेदों से निर्मित स्वरूप के प्रयोग से अंततः नाटक स्थिर होता है । इनमें आंगिक अभिनय महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें अंग(सर, हाथ, कटि, वक्ष इत्यादि), उपांगों (नेत्र, भ्रू, नासिका, अधर, कपोल इत्यादि), प्रत्यंग, शरीर मुखज का महत्वपूर्ण योगदान होता है । इसके संतुलित एवं परिवेशगत प्रयोग से नाटक अपनी पूर्णता को प्राप्त करता है ।
भगत सिंह के व्यक्तित्व पर एक प्रस्तुति में नाट्य तत्वों का पूर्ण परिपाक कठिन साध्य है । यह एक चरित्र के लिए राममय होने के समान है । परंतु उपर्युक्त वर्णित अभिनय के समस्त भेदों को एक में फेंटकर की गयी प्रस्तुति ने रंगमंच की तमाम संभावनाओं को जीवंत कर दिया । यदि भगत सिंह के जीवन के लगभग साढ़े तेईस वसन्त पर गहरी मन्त्रणा करें तो अंतहीन समय लग सकता है । परंतु आशीष त्रिवेदी ने इसे बखूबी जिया है । यह क्षणिक नहीं अपितु अनुभव के ताप में तपे कलाकार की अभिव्यंजना थी ।
इस प्रस्तुति में भरत मुनि द्वारा वर्णित बीस कर्मों में समा, नता, उन्नता, त्रयरत्रा, रेचिता इत्यादि कर्मों का पूर्ण परिपाक मिला । वस्तुतः वाचिक अभिनय शेष सहयोगी अभिनयों के साथ मिलकर रस निष्पत्ति में सहायक होते हैं । प्रसंगतः भगत सिंह नाटक के संवाद एवं वागाभिनय के लिए किया गया सर्वोच्च प्रयत्न महत्वपूर्ण है । इस प्रस्तुति के एक एक संवाद हमारे उक्त कथन के साक्षी हैं ।
कहने का आशय है कि-इतिहास-संस्कृति-साहित्य एवं कला के अद्भुत सम्मिलन ने दर्शक दीर्घा में नयी लहर का संचार किया ।
अतः इस बेहतरीन प्रस्तुति एवं
जनपद में कला एवं साहित्य को जीवंत बनाये रखने के लिए आशीष त्रिवेदी जी सहित उनकी पूरी टीम को अनघा बधाई ।
फोटो-साभार
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