शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

यात्रीगण कृपया ध्यान दें..अपनी बात


अपनी बात : बचपन स्वर्ण बिहान


"बचपन" किसी भी व्यक्ति के लिए स्वर्णिम बिहान होता है । क्योंकि यहाँ एक ऐसे सौम्य वातावरण से सबका सामना होता है, जिसकी सहजात प्रवृत्ति स्वतः सिद्ध होती है । यह दशा हर वर्ग में विशेष रूप में विद्यमान होती है । 

अपना बचपन भी कमोबेश इसी वातावरण में व्यतीत हुआ । यत्र तत्र सर्वत्र सहजता सामान्यतः विद्यमान रही । लेकिन एक बात भिन्न रही-आत्मसंतुष्टि । इसका कारण अपना परिवार था । पालन-पोषण का अपना निराला अंदाज । गाँव के हर घर में एक सामान का माहौल रहा । स्कूल जाने के लिए रस्सा-कस्सी हो या किसी तीज त्यौहार में पकवान बनने और खाने के बीच के अंतराल का सौंदर्य हो । लेकिन उस समय शहर-गाँव के बीच की विभाजक रेखा बहुत मोटी थी । इसका प्रमाण बहरा (शहर में रह रहे लोगों का निवास स्थान) से आये बच्चों की भाषा शैली में सहज ही मिल जाता था । गाँव में उस समय दो बोलियों-भाषाओं का लगभग अकाल था, जिसमें पहले स्थान पर निःसंदेह अंग्रेजी और दूसरे स्थान पर खड़ी बोली रही । अंग्रेजी जानने वाले गाँव-जवार में एकाध लोग थे । इनकी सेवा तार को बाँचने में लिया जाता था । हिन्दी के नाम पर खड़ी बोली शहरों की भाषा थी । जब बहरा से बच्चे आते थे तो इसी खड़ी बोली में बात करते थे तो गाँव के पुराने लोग कह पड़ते थे-का बबुआ ! काहें अंगरेजी छाँट ताड़ । इतना कहने की देर थी कि वे और हुमच कर बाँचने लगते थे ।

हम लोग उस समय भोजपुरी में पढ़ते-सोचते और इसी बोली में जीवन व्यतीत करते थे ।हमें उस समय भी अपनी बोली पर गर्व था और आज तो गुमान है । जब दक्षिण में था तो सरकारी बैठक में इसी के माध्यम से हम मित्र द्वय चुटकी लेते थे और उत्तर में आने के बाद तो यही बोली आधार बनी । हाल ही में 13 दिसम्बर को साक्षात्कार के समय एक सम्मानित  सदस्य ने कहा कि-आपकी भाषा में भोजपुरी की मिठास कायम है ? हमने बड़े गर्व से कहा-सर, जिस माटी ने हमें कभी दुत्कारा नहीं केवल दुलार ही दुलार दिया । ऐसी माटी की मिठास से मैं स्वयं को कृतार्थ मानता हूँ । यह मेरा सौभाग्य है । लेकिन अफ़सोस ! आज कुछ लोग इसे हेय समझते हैं और स्वयं को अंग्रेजी-दा कहलाने में ही श्रेष्ठता का एहसास करते हैं । 

प्रसंगतः वर्तमान समय से उन लोगों की तुलना करना सूरज को दीपक दिखाने जैसा है क्योंकि उस समय अधिकांश व्यक्ति स्वयं के कार्यों से खुश रहते थे । कार्य किसी भी स्तर का क्यों न हो । उनके पास भेदभाव का वैचारिक आधार उतना स्वस्थ नहीं था क्योंकि जन्मना सिद्धांत धीरे-धीरे काले विवर की और अग्रसर हो रहा था । हालाँकि समय के साथ लोगों के मन में नये-नये विचार पनपने लगे थे, जिससे एक नयी धारा का प्रभाव में आना लाजमी था । यह धारा कालांतर में दो भागों में  बँट गयी । पहले का आधार आर्थिक है क्योंकि लोग अर्थ के आधार पर वर्ग-विभाजन करने को अभिशप्त हैं । यह विभाजन तब अधिक आश्चर्यजनक लगता है जब एक ही वर्ग में लोग स्वयं को एलिट और हेय समझने की भूल कर बैठते हैं । 

वाया गंगा कावेरी

क्रमशः

पुरानी 


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