रविवार, 21 अप्रैल 2013

मौसम सुहाना है


आँधी-पानी लेकर
बादलों ने कहर बरपाया
धरती की पीड़ा को और बढ़ाया |
लोग झाँक रहे
अपने घर की खिड़की से
सहम गया मन सहम गयी जिंदगी |
कुछ ने कहा-
भई ! वाह क्या कहना
मौसम सुहाना है यही है गहना |
महलों-राजमहलो में
बयार की आवाजाही नहीं
पवन देव तो बसते है
गाँवों औ गलियों में
असर भी छोड़ते है_
मिटाकर भी जिलाते हैं
स्वर्ग में नहीं फिर भी
नरक में रहने को मजबूर भी करते हैं ||

२०/०४/१३

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण

बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण बेहतरीन पल : चिंतन, चुनौतियाँ, लक्ष्य एवं समाधान  (सरकारी सेवा के बीस साल) मनुष्य अ...