सोमवार, 13 मई 2013

मलाला की डायरी

 

मलाला की डायरी

कल मलाला की डायरी(मलाला युसुफजई) का कुछ अंश को पढकर मन में तमाम सवाल उमड़ने लगे | सबसे पहला सवाल तो यही है कि-एन फ्रैंक और मलाला बनाम आलो आंधारि की तुलना किस स्तर तक किया जा सकता है ? नसरूद्दीन ने मलाला के छद्म नाम 'गुल मकई' के माध्यम से ( सनीचर, 3 जनवरी 2009 : मैं डर गई और रफ्तार बढ़ा दी से जुमेरात, 12 मार्च 2009 : जन्नत में हूरें अनीस का इंतजार कर रही हैं तक हिन्दी समय पर) स्वात घाटी में स्त्री पीड़ा को बड़े ही सहज भाव से अनुवाद का सुधरा रूप प्रस्तुत करते हैं |
यह डायरी एन फ्रैंक की डायरी से इस बात में विशेष है कि-यहाँ स्त्री विमर्श में प्रेम का कोई ज्यादा योगदान नहीं अपितु मलाला ने उस घाटी और तालीबानी हकीकत को दुनिया के सामने रखा है | जबकि आलों आंधारि में कश्मीर से कोलकाता गयी लड़की की कहानी है | दूसरे शब्दों में पश्चिमी-एशिया-भारत का एक ऐसा त्रिकोण निर्मित होता है, जिसका अंतिम उद्देश्य एक ही है-स्त्री मुक्ति | कहने का तात्पर्य यही है कि-मलाला स्वयं कहती है-मैं आज उठते ही बहुत ज्यादा खुश थी कि आज स्कूल जाऊँगी। स्कूल गई तो देखा कुछ लड़कियाँ यूनिफार्म और बाज घर के कपड़ों में आई हुई थीं। असेंबली में ज्यादातर लड़कियाँ एक-दूसरे से गले मिल रही थीं और बहुत ज्यादा खुश दिखाई दे रही थीं।(पीर, 30 फरवरी 2009 : स्कूल खुल गए) क्या इस कथन से हम मान लें कि-स्वात घाटी में अमन चैन आ रहा है याकि इस कथन भी तालिबानीकरण की बू आती है | जो भी हो यह डायरी एक ऐसा दस्तावेज है, जो एन फ्रेंक की डायरी से कई मायनों में भारी है |

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