बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

विश्व खाद्य दिवस विशेष-16 अक्टूबर

विश्व खाद्य दिवस विशेष-16 अक्टूबर 

अन्न  ब्रह्म है.....खाद्यान्न संकट और सामान्य जन
 
अन्न के दाने को मोहताज
विश्व के जन जन की वेदना
आह भरती रहती दिन-रात
गेहूँ-चावल-दाल-सब्जी की
करते बड़े रोज ही व्यापार
घर में नदियाँ बहती दूध की
दाना बेचारा छोड़ता रहता साथ
कब आयेगी लौट अपने में
यही सोच बीते कई साल ||

भारत  सहित सम्पूर्ण विश्व आज खाद्यान्न संकट को लेकर चिंतित है जबकि विश्व खाद्य भण्डारण की समस्या सबसे भयावह स्थिति की तरह विकराल स्वरूप को पारिभाषित करता है | आधुनिक युग को वैज्ञानिक युग से अभिहित किया जाता है..कभी नासा, तो कभीचाँदीपुर, तो कभी कोरू से अंतरिक्ष में तमाम उपग्रह भेजे जा रहे हैं और भारत भी इसमें अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है | लेकिन क्या कभी इस संकट से उपजी महँगाई से पीड़ित सामान्य जन की ओर सरकार का ध्याननहीं जाता | संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट इस समस्या का एक ऐसा खांका खींचती है, जिसे सुनकरमन व्याकुल जो जाता है |इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि-2002  से अब टक महँगाई 120  फीसदी टक बढ़ी है लेकिन केवल भारत में हर साल भण्डारण के अभाव में 35  फीसदी अनाज बर्बाद होता है | अमेरिका में 40  फीसदी और अन्य यूरोपीय देशों में हो रही बर्बादी नयी समस्याओं को ईजाद करते हैं | अदम गोंडवी ने इस समस्या को भूखमरी से जोड़ते हुए सटीक टिप्पणी की है-यथा-
भूखमरी  की जड़ में है या दार के साये में है |
अहले-हिंदुस्तान अब तलवार के साये में है |

छा गयी है जेहन के पत्तों पे मायूसी की धूप,
आदमी गिरती हुई दीवार के साये में है |

बेबसी का इक समुन्दर दूर टक फैला हुआ,
और कश्ती कागजी पतवार के साये में है |

हम फकीरों की न पूछो, मुतमईन वो भी नही,
जो तुम्हारी गेसुएँ-खमर के साये में है ||(धरती की सतह पर-पृष्ठ-36)
अदम  गोंडवी ने जिस भूख की पीड़ा को महसूस किया था वह पीड़ा आज भी सताती है | गाँधी जी भी कहते थे-सस्ती और आसानी से उपलब्ध साग सब्जी का आहार, जिसे गरीब लोग खरीद सकता हैं और पचा सकते हैं | लेकिन क्या गरीबों को भरपेट भोजन नसीब होता है और यदि होता है तो संतुलित आहार के मानकों पर खरा उतरता है ? क्या कभी हमने सोचा है कि-एक आदमी दिन रात म्हणत मजदूरी करते हुए अपने परिवार का भरण पोषण किस तरह करता है | खाद्य सुरक्षा के नाम पर दिन-प्रतिदिन हो रही लूट का जिमेदार कौन है ? अभी हाल ही में हमने छत्तेसगढ के एक गाँव में गया था | अचानक पहुँचने के बाद उस परिवार पर मनो पहाड़ गिर गया| परिवार के सभी सदस्य परेशान..क्या करें..घर में भूसी-भांग नहीं..कैसे करे आतिथ्य सत्कार | लेकिन भारतीय सभ्यता के कर्णधार ग्रामीण जनों की प्रवृत्ति ही इस मझधार से दूर निकालने में कामयाब हुई |
      संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1980 में खाद्य सुरखा को ध्यान में रखकर (खाद्य सुरक्षा सनाथान-रोम) जो अभियान चलाया था , वह अपना कार्य तो कर रहा है लेकिन यथार्थ की तस्वीर कुछ और बयाँ करती है | आज सम्पूर्ण विश्व इस महामारी की चपेट में आ चुका है | राह चलते हम सुनते हैं कि-भाई ! विदेशों में केवल अमीर ही बस्ते हैं...वहाँ गरीब कहाँ ? लेकिन शिक्षित जन को इस बात की जानकारी बखूबी रहती है | मैं तो जोर देकर कहना चाहता हूँ कि-खाद्य सुरक्षा और संरक्षा को लेकर जो प्रयास किये जा रहें हैं, वह केवल और केवल आँकड़ों से बढ़कर कुछ नहीं | भारत में ये आकडे अपना कारनामा भी दिखाते हैं, जिसका खामियाजा भुगतते जनता इसका प्रमाण दे सकती है | अभी हाल ही में छपरा में घटी घटना इसका ज्वलंत प्रमाण है | कुल मिलाकर मैं इतना ही कह सकता हूँ कि-
भारत के गौरव को बढ़ाना है
खाद्यान्न को बर्बाद होने से बचाना है
क्रमशः
      

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