शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

गाँधी, बा, बेन और वो

गाँधी, बा, बेन और वो

(मीरा और महात्मा के परिप्रेक्ष्य में )


सुधीर कक्कड़ की पुस्तक "मीरा और महात्मा" में गाँधी को मेडलिन स्लेड(मीरा) के बहाने नए तरीके से जानने, समझने और अवसर प्राप्त होता है लेकिन कुछ सवाल हमारे दिमाग में गाँधी की नवीन व्याख्या करने में सहायक बनने के लिए आये हैं, जिसे आधार बनाकर हमें समीक्षा लिखने का प्रयास किया-
1. यह पुस्तक चतुष्कोणीय प्रेम के निमित्त मीरा के चरित्र को उजागर करती है..जिसमें रोमा-रोला(आध्यात्मिक), गाँधी, हिन्दी शिक्षक(स्वयं लेखक) और पृथ्वी सिंह को लेखक ने सहायक के रूप में वर्णित किया है |
2. 1925 se 1939 और १९३९ से  1942 की सच्ची कहानी मानते हुए लेखक ने शामिल किया है |
३. मीरा के पत्र, गाँधी के पत्र और पृथ्वी सिंह के पत्रों को नेहरू संग्रहालय में तथा इसे वास्विक घटनाओं पर आधारित माना है जबकि रोमा-रोला को लिखे मीरा के पत्र तथा मीरा की डायरियों को काल्पनिक माना है |
4. यदि लेखक की बातों पर विश्वास करें तो मीरा-गाँधी के संबंधों को एक नया रूप देने में कोई हिचक नहीं क्योंकि जब कभी गाँधी जी मीरा को पत्र लिखते हैं तो प्राम्भ में प्रिय और अंत में प्यार दर्शाते हैं जबकि अन्य पत्र में बापू के आशीर्वाद ही दिखायी देता है |
5. उपन्यास का धान पक्ष मीरा की समर्पण भावना ही कही जा सकती है साथ ही पृथ्वी सिंह के त्याग को भी नाकारा नहीं जा सकता |
६. जब तक मीरा सीगांवसेवाग्राम) नहीं गयी होती तब तक बा(कस्तूरबा गाँधी) का मीरा के प्रति व्यवहार पति, पत्नी और वो की परिभाषा की सार्थकता ही सिद्ध करता है | लेखक ने बा की पीड़ा को भी व्यक्त किया है-बा ने महसूस किया कि जब भी वे मीरा के साथ होते थे उनमें एक स्फूर्ति भर जाती, जो बा को उनकी उपस्थिति से बहिष्कृत कर देती, बा के लिए उनके दिमाग को बंद कर देती, भले ही उनका हाथ उनके सिर पर घी मॉल रहा हो | और जब वह बीमार थी तो न्यूनतम सहानुभूति नवीन से इस रूप में प्रकट करती है-उसे बापू के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है | उनकी अच्छी देखभाल हो रही है |(page106)
7. उपन्यास में आये कुछेक अश्लील प्रसंग मीरा की भक्ति के शारीरिक पक्ष का पोषण करते हैं जबकि मानसिक पक्ष बिएना के बेडन में जंगल में स्थित कुटिया में नवीन से मिलने के बाद कहती है कि-नवीन, मैं कितनी भाग्यशाली हूँ कि ईश्वर की पुकार साफ-साफ सुन पायी | एक बार नहीं, दो बार ! वोदीवें के संगीत और बापू के व्यक्तित्व में | अधिकतर लोग उस आवाज को नहीं सुन पाते |.....ईश्वर से साक्षात् साक्षात्कार तो मीरा को एक दर्जा ऊंचा स्थान प्रदान करता है लेकिन इस समर्पण में वासनात्मक मोह वस्तुतः गाँधी की नयी व्याख्या करने को मजबूर करता है |
डॉ. मनजीत सिंह
१८/१०/१३

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