रविवार, 27 अक्तूबर 2013

बीते पल.... !!


बीते पल.... !!


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कितना मधुर था 
कितना सुघर था 
कितना सुन्दर था 
हमारा वह पल !!
छोटे-छोटे पाँव 
पराये वसन से 
सुसज्जित होकर,
परायी किताबों से 
लदकर धरती को 
हल्का ही प्रतीत होते |
नित नयी परिपाटी में 
रहने के लिए बैचैन 
मन ही मन वह 
कुछ न कहते हुए भी 
सब कह जाते ||
परी भूत बनकर 
दादी की कहानियों में 
रोज-रोज ही आती 
काश वह पल 
आज मुझे नहीं रूलाते !!

डॉ. मनजीत सिंह

27/10/13

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