बीते पल.... !!
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कितना मधुर था
कितना सुघर था
कितना सुन्दर था
हमारा वह पल !!
छोटे-छोटे पाँव
पराये वसन से
सुसज्जित होकर,
परायी किताबों से
लदकर धरती को
हल्का ही प्रतीत होते |
नित नयी परिपाटी में
रहने के लिए बैचैन
मन ही मन वह
कुछ न कहते हुए भी
सब कह जाते ||
परी भूत बनकर
दादी की कहानियों में
रोज-रोज ही आती
काश वह पल
आज मुझे नहीं रूलाते !!
डॉ. मनजीत सिंह
27/10/13
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