नहीं हुआ न्याय !!
बाबा की बगिया में
आम-अमरुद-महुआ पर
बेर का पेड़ भारी होकर
अपनी कटीली झाडियों से
करता रहता है रखवाली ||
बरसों बीत गए
बाँस की मचान पर
गुदड़ी में लिपटे मटमैले
बिस्तर भी जवाब देकर
साथ छोड़ने को नहीं तैयार ||
रात रानी की सुगंध भी
फींकी सुगंध बिखेरकर
चिढाती रही चाँदनी रात
पपीहा की आवाज से अब
संगम का कहाँ हुआ एहसास ||
ललमुनिया भी सुध खोकर
बाजरे की लिटी को गेहूँ समझ
अब पकाती रही मीठे पकवान
नून-तेल-मिर्ची की त्रिवेणी पर
रोटी संग कहाँ हुआ स्नान ||
पिरामिड के ऊपर बैठ
यमराज के दूत को सपने में देख
स्वर्ग में जगह आरक्षित करने की
बढ़ीं लालसा औ याद आया गोदान
अंत समय तक नहीं हुआ न्याय ||
डॉ. मनजीत सिंह
06/01/14
06/01/14
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