बुधवार, 20 नवंबर 2013

गजल

                        1
घाव कुरेदकर दर्द बढ़ाने वाले खूब मिल जायेंगे 
काश कोई मरहम लगाने का गुर सिखा जाता || 

*******डॉ. मनजीत सिंह***********
19/11/13



अब तो मजबूर  हूँ, अक्ल के  दुश्मनों से 
दोस्ती के बहाने  दुश्मनी कायम रखते हैं ||
देते रहते हैं उपहार, दुःख की गगरी भरकर 
राह चलते ही  आँखे चार किया करते हैं ||


*******डॉ. मनजीत सिंह*********** 
20/11/13

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण

बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण बेहतरीन पल : चिंतन, चुनौतियाँ, लक्ष्य एवं समाधान  (सरकारी सेवा के बीस साल) मनुष्य अ...