रविवार, 27 अक्तूबर 2013

गजल

हम ठहर गए जमीन पर, आसमा तक पहुँच कहाँ, 
आजमाया तो खूब हमने, उनके आगे नसीब कहाँ |
गम की आँसू की बूँद भी, धार बन सूखने को मजबूर 
दुनियादारी की रस्मों में, उस यारी के लिए वक्त कहाँ | 

डॉ. मनजीत सिंह

27/10/13

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