हम ठहर गए जमीन पर, आसमा तक पहुँच कहाँ,
आजमाया तो खूब हमने, उनके आगे नसीब कहाँ |
गम की आँसू की बूँद भी, धार बन सूखने को मजबूर
दुनियादारी की रस्मों में, उस यारी के लिए वक्त कहाँ |
डॉ. मनजीत सिंह
27/10/13
आजमाया तो खूब हमने, उनके आगे नसीब कहाँ |
गम की आँसू की बूँद भी, धार बन सूखने को मजबूर
दुनियादारी की रस्मों में, उस यारी के लिए वक्त कहाँ |
डॉ. मनजीत सिंह
27/10/13
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