रविवार, 27 अक्तूबर 2013

धिक्कारती रही बार-बार !!

धिक्कारती रही बार-बार !!


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सुरक्षित जीवन की ललक 
सुना पड़ते ही विवर में खो जाता 
आते-जाते राहों में निजता जीवित 
हल्की पड़ भागर-ताल में भटकते 
उस अछोर क्षितिज की ओर निहार 
वह धिक्कारती रही बार-बार || 

डॉ. मनजीत सिंह

27/10/13

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