धिक्कारती रही बार-बार !!
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सुरक्षित जीवन की ललक
सुना पड़ते ही विवर में खो जाता
आते-जाते राहों में निजता जीवित
हल्की पड़ भागर-ताल में भटकते
उस अछोर क्षितिज की ओर निहार
वह धिक्कारती रही बार-बार ||
डॉ. मनजीत सिंह
27/10/13
मीडिया में हिन्दी साहित्य का नया चेहरा.....अथ साहित्य जिज्ञासा । इस मंच पर हिंदी साहित्य से संबंधित नवोदित कवि-साहित्यिक गतिविधियों को प्रश्रय दिया जायेगा । इसके साथ ही इस ब्लॉग पर प्रकाशित विचार लेखक के स्वयं के हैं ।इससे मेरे प्रतिष्ठान या संस्थान से कोई संबंध नहीं है । यहाँ बाल साहित्यकारों की रचनाएँ भी प्रकाशित की जायेगी । जो सज्जन इस मंच पर अपनी रचनाएँ प्रकाशित करना चाहते हैं, उनका हृदय से स्वागत है । ऐसे रचनाकार अपनी रचनाएँ मुख्य पृष्ठ पर दिये लिंक के माध्यम से भेज सकते हैं ।
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