बुधवार, 19 अगस्त 2015

प्राथमिक शिक्षा : एक अनिवार्य पहल
शिक्षा के सरकारी स्वरूप पर लोग ऊँगली उठाने में कतराते नहीं है, लेकिन यह निःसंदेह सत्य है कि-यहाँ के शिक्षकों का स्तर प्राइवेट की तुलना में बहुत ही उच्च कोटि का है | इतना होने पर भी अप्रत्यक्ष रूप में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का पुरजोर विरोध किया जा रहा है तथा सुप्रीम कोर्ट के भरोसे आश्वस्त होकर इस ऐतिहासिक फैसले की धज्जियाँ उड़ाने की तैयारी की जा रही है | कुल मिलाकर शिक्षा इन्हीं नौकरशाही एवं राजशाही शिकंजे में अंतिम सांस ले रही है विशेषतः प्राथमिक सरकारी शिक्षा |
प्राथमिक शिक्षा की दुरवस्था को देखने के लिए बहुत दूर जाने की कोई जरूरत नहीं | जब भी किसी व्यक्ति को जी चाहें इसके यथार्थ रूप को देख सकता है | धाराबी की बस्तियों से लेकर रेल की पटरियों के किनारे विकसित हो रही जिन्दगी को सांस लेने एवं भोजन ग्रहण करने को मनरेगा ही बहाना मिलता है | आज मोदी से लेकर केजरीवाल तक एवं गाँव से लेकर शहर तक ऐसे स्कूल अपनी महत्ता खोने को विवश हैं | इसमें सबसे बड़ी बात है कि-इनकी स्थिति शिक्षकों के कारण दयनीय नहीं है अपितु छात्रों की घटती संख्या के कारण है | इसके निमित्त सरकार का अपेक्षित सहयोग जरूरी है |
जब कोई व्यक्ति अपने ओहदे के कारण व्यवस्था में व्यवधान डालने की कवायद करता है तो वह सामाजिक पृष्ठभूमि में सेंध लगाते हुए संस्कृति को पतन की ओर ही ले जाता है | ऐसी परिस्थिति में वह न केवल अपने बच्चों की शिक्षा का गला घोंटता है अपितु लाखों-करोड़ो नौनिहालों के जीवन को अंधकारमय बनाता है | जरा कल्पना करें-डिप्टी साहिब.......बेसिक शिक्षा अधिकारी.....सहित शैक्षिक महकमे के बड़े से बड़े अधिकारी, जो रौब के साथ कभी-कभी सुदूर प्राथमिक स्कूल में चले भी जाते थे...अब अपने बच्चों को छोड़ने के लिए अनिवार्यतः जायेंगे तो कितना विहंगम दृश्य होगा ! 
‪#‎इस‬ फैसले में हाईकोर्ट को एक और कालम जोड़ना चाहिए था-अधिकारियों, कर्मचारियों, सांसदों, विधायकों को अपने बच्चों का प्रवेश स्वयं के गृह जनपद(गाँव-नगर) कराना जरूरी है | ऐसी परिस्थिति में कम से कम एक साथ दो काम हो जाता-पहला प्राथमिक शिक्षा का कल्याण एवं दूसरा माता-पिता के कर्ज से मुक्ति हेतु प्रयास | पहला कार्य भले ही जरूरी लगे...दूसरा कार्य महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका कार्य रूप देकर नौकरशाहों को अपने बचपन की यादें पचपन में आती | बहरहाल हाईकोर्ट के फैसले पर राजनीति करना शिक्षा व्यस्था के साथ मजाक करने के बराबर है | अतः इस फैसले का सम्मान करना चाहिए एवं इसमें जनता को सहयोग करना चाहिए |
क्रमशः @डॉ. मनजीत सिंह

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