मंगलवार, 18 जनवरी 2022

साही/त्रिलोचन की कविता का यथार्थ 

 

साही के शरीर पर काँटे ही काँटे

होते हैं जो उस पर हमला करने वाले से

उस की रक्षा करते हैं।


जब संकट नहीं होता तब अंधेरी रात में

साही सावधानी से चलता है, उस के चलने से

काँटों से जो आवाज होती है उस से

जान पड़ता है कोई तरुणी पायल नूपुर पहने

प्रिय से मिलने के लिये जा रही है।


आत्मरक्षा के लिये साही के सभी काँटे

शत्रु को घायल कर देते हैं।


यह कविता एक तरफ आत्मरक्षा की प्रवृत्ति को द्योतित करती है तो दूसरी तरफ सौंदर्य की नयी आभा भी प्रस्तुत करती है । परन्तु यदि हम साही से लिपटे काँटों को प्रशासन में लिप्त अहिराजों से जोड़ते हैं तो सहज ही कविता का लालित्य झलकने लगता है । 

आज प्रशासन खंडहर की तरह विलाप करने को अभिसप्त है, इसका सबसे बड़ा कारण उपर्युक्त व्यक्तित्व को दिया जा सकता है । क्योंकि ये तथाकथित चम्मच संस्कृति के अगुआ होते हैं और उनके पास हर किस्म के चम्मच उपलब्ध होते हैं । एक चम्मच एक काँटे के बराबर होता है । कहते हैं-साही में हजारों काँटे होते हैं, जिससे वह विकास की बजाय विनाश करती है -प्रसंगतः यह कह सकते हैं कि-


दोमुँहें साँपों से घातक

अहिराज से बदतर

उसकी काँटों से

भयभीत समाज में

विकास की लकीर गायब है

मन में, तन में "औ" जीवन में

झंकृत संस्कृति 

काँटों तले विलाप करती

इठलाते-झुठलाते ताना मारे

मरते को स्वर्ग में भी सताते ।।


डॉ.मनजीत सिंह

18.01.18

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