आत्मा की नजरों में घोषित
वर्तमान समय में लोग इतनी तीव्र गति से अपना रूप बदलते है कि केंचुल छोड़ता अहि भी शर्म से पानी-पानी हो जाय । लोगों के रंग-ढंग में बनावटीपन और स्तरविहीन व्यक्तित्व के बोझ तले दबकर उसके चतुर्दिक निर्मित संसार एक तरफ से गिरता चला जाता है और उसे एहसास भी नहीं होता ।
फोटो-साभार गूगल
दरअसल ऐसे लोगों के लिए लोकप्रचलित शब्द प्रसिद्ध है । वह है-गिरगिट । वह गिरगिट की तरह रंग बदलता है । परन्तु गिरगिट की केवल गर्दन रंगीन होती है । उस व्यक्ति का सम्पूर्ण शरीर बदरंग हो जाता है । इस चितकबरी काया को लेकर वह बहुत गर्व करता है ।
आश्चर्य तो तब अधिक होता कि धीरे-धीरे उसे अपना "असली चेहरा याद नहीं /(जहीर कुरैशी) आता । और जहीर कुरैशी के शब्दों में वह स्थितप्रज्ञ को स्वीकार करते हुए कहता है-
भीतर से तो हम श्मशान हैं
बाहर मेले हैं ।
कपड़े पहने हुए
स्वयं को नंगे लगते हैं
दान दे रहे हैं
फिर भी भिखमंगे लगते हैं
ककड़ी के धोखे में
बिकते हुए करेले हैं ।
इतने चेहरे बदले
असली चेहरा याद नहीं
जहाँ न हो अभिनय हो
ऐसा कोई संवाद नहीं
हम द्वन्द्वों के रंगमंच के
पात्र अकेले हैं ।
दलदल से बाहर आने की
कोई राह नहीं
इतने पाप हुए
अब पापों की परवाह नहीं
हम आत्मा की नज़रों में
मिट्टी के ढेले हैं ।
साभार-कविता कोश
फोटो-गूगल से साभार
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