शनिवार, 16 अप्रैल 2022

स्व की गुफा में भटकते लोग

आत्मा की नजरों में घोषित 


वर्तमान समय में लोग इतनी तीव्र गति से अपना रूप बदलते है कि केंचुल छोड़ता अहि भी शर्म से पानी-पानी हो जाय । लोगों के रंग-ढंग में बनावटीपन और स्तरविहीन व्यक्तित्व के बोझ तले दबकर उसके चतुर्दिक निर्मित संसार एक तरफ से गिरता चला जाता है और उसे एहसास भी नहीं होता । 

फोटो-साभार गूगल

दरअसल ऐसे लोगों के लिए  लोकप्रचलित शब्द प्रसिद्ध है । वह है-गिरगिट । वह गिरगिट की तरह रंग बदलता है । परन्तु गिरगिट की केवल गर्दन रंगीन होती है । उस व्यक्ति का सम्पूर्ण शरीर बदरंग हो जाता है । इस चितकबरी काया को लेकर वह बहुत गर्व करता है । 

आश्चर्य तो तब अधिक होता कि धीरे-धीरे उसे अपना "असली चेहरा याद नहीं /(जहीर कुरैशी) आता । और जहीर कुरैशी के शब्दों में वह स्थितप्रज्ञ को स्वीकार करते हुए कहता है-

भीतर से तो हम श्मशान हैं
बाहर मेले हैं ।

कपड़े पहने हुए
स्वयं को नंगे लगते हैं
दान दे रहे हैं
फिर भी भिखमंगे लगते हैं

ककड़ी के धोखे में
बिकते हुए करेले हैं ।

इतने चेहरे बदले
असली चेहरा याद नहीं
जहाँ न हो अभिनय हो
ऐसा कोई संवाद नहीं

हम द्वन्द्वों के रंगमंच के
पात्र अकेले हैं ।
 
दलदल से बाहर आने की
कोई राह नहीं
इतने पाप हुए
अब पापों की परवाह नहीं

हम आत्मा की नज़रों में
मिट्टी के ढेले हैं ।

साभार-कविता कोश

फोटो-गूगल से साभार

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