महतारी दिवस
साभार
माँ ने मुझे क्यों कभी नहीं टोका?
मुझे दादाजी ने टोका, पिताजी ने टोका
सिर्फ़ माँ ने ही
कभी किसी बात के लिए नहीं रोका
एक वही मेरे साथ है
मैं लम्बे समय तक यही समझता रहा
सालों बाद एक शाम मुझे शक हुआ
कोई साथ है फिर क्यों चुप है?
मैंने उससे पहली बार पूछा
माँ तुमने मुझे क्यों कभी नहीं टोका?
क्या सहमत होने का अर्थ चुप रहना होता है?
उसने पहली बार कुछ बोला
तुम्हारे दादा बहुत सख़्त थे
उसके सामने मैंने कभी मुँह नहीं खोला
तुम्हारे पिता भी बहुत सख़्त थे
उसके सामने मैंने कभी मुँह नहीं खोला मैं
ने जीवन-भर तुम्हें भी कुछ नहीं कहा
क्योंकि मैंने कभी भी
सवाल करना ही नहीं सीखा।
(ईश्वर और बाजार-जंसिता केरकेट्टा)
आँख…..
मेरी बूढ़ी माँ को
मोतियाबिन्द की शिकायत है
लेकिन उसकी आँखें
अँधेरे में भी देख लेती हैं
जब मैं लेटता हूँ उसकी बग़ल में
तो वो मुझे टटोलती है
जैसे ढूँढ़ रही हो अपनी कोई खोई हुई चीज़
और बिना कहे जान लेती है
कि मेरे पेट में दर्द है या सिर में थोड़ा बुख़ार
मुझे पहचानने के लिए
वो कोई चश्मा भी नहीं लगाती
बस टो कर ही समझ लेती है
कि मैं हूँ
सब कहते हैं
कि मेरी माँ अंधी है
लेकिन मैं कहता हूँ
कि हम सब अंधे हैं
केवल माँ को छोड़कर
माँ ने तो अपने हाथों में आँखें उगा ली हैं
और हम सब अपनी आँख
कहीं रखकर भूल गए हैं…
(अदनान कफील 'दरवेश'..ठिठुरते लैम्प पोस्ट)
माँ का दुःख……
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को कहते वक़्त जिसे मानो
उसने अपनी अंतिम पूंजी भी दे दी
लड़की अभी सयानी थी
इतनी भोली सरल कि उसे सुख का
आभास तो होता था
पर नहीं जानती थी दुख बाँचना
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश में
कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए होती है
जलने के लिए नहीं
वस्त्राभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसा दिखाई मत देना ।
*****ऋतुराज