कुछ बातें जो चाहते हुए भी
नहीं कह पाते
बाद में यही बात
परास्त करने को आतुर
लेकिन कभी तो यही
आगे बढ़ने में मदद
करती हमें मंजिल तक
पहुंचाते हुए रंगीन सपने
दिखाती, यथार्थ से मिलकर
वह कर दिखाती हैं,
जो न कभी सोचा था, न समझा था|
सात दिसंबर २०१२
नहीं कह पाते
बाद में यही बात
परास्त करने को आतुर
लेकिन कभी तो यही
आगे बढ़ने में मदद
करती हमें मंजिल तक
पहुंचाते हुए रंगीन सपने
दिखाती, यथार्थ से मिलकर
वह कर दिखाती हैं,
जो न कभी सोचा था, न समझा था|
सात दिसंबर २०१२
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