रविवार, 23 दिसंबर 2012

कुछ बातें जो चाहते हुए भी
नहीं कह पाते
बाद में यही बात
परास्त करने को आतुर
लेकिन कभी तो यही
आगे बढ़ने में मदद
करती हमें मंजिल तक
पहुंचाते हुए रंगीन सपने
दिखाती, यथार्थ से मिलकर
वह कर दिखाती हैं,
जो न कभी सोचा था, न समझा था|

सात दिसंबर २०१२

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण

बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण बेहतरीन पल : चिंतन, चुनौतियाँ, लक्ष्य एवं समाधान  (सरकारी सेवा के बीस साल) मनुष्य अ...