रविवार, 20 जनवरी 2013

बेटी बचाओ........!

कविता

बेटी बचाओ........लाज बचाना अभी बाकी है ?

देश की गरिमा और महिमा
दम तोड़ते रिश्ते पर
भारी पड़ रहे हैं -
पहचान बनाने हेतु
नयी तकनीक युक्त परीक्षण
सबसे बड़ा हथियार बनकर
अभी भी कुतर रहा है.....!
समाज की दरखत को |
चूहे-बिल्ली के खेल में
निवाला बनकर फंसती हैं-बेटियाँ !
अवतरित होने के पहले ही
टुकड़े-टुकड़े हो जाती हैं-बेटियाँ !
डागदर साहब भी फ़कीर का चोला पहने
भीख मांगती माओं को
न ही जीवन देते औ
न ही नवागंतुक को दे रहें अवकाश !
करते रहें हैं वे हमेशा
ऐसे जीव का शोषण
जो रोने के लिए लालायित
व्याकुल मन को भी मार रहें हैं-
कभी तीन.... ! कभी चार......!
इतनी  सीमा पर विराम
लगाकर  उन्हें संतोष कहाँ
आठ, नव और सात के चक्कर में
फँसती, उलझती जाती है-बेटियाँ |
ममता के बदल मंडराते रहते
घुमड-घुमड वो आते रहते
मोह-माया के बंधन में भी नहीं फंसती-बेटियाँ |
सरकार की शैतानियत के शिकंजे में
कसती चली जाती हैं - बेटियाँ |
विश्व पटल पर विलाप करती
ईरान-अफगान की क्रूरता
कालेज को घर औ घर को
श्मशान  बनाते लोगों पर
भारी पड़ती रहती हैं -बेटियाँ |
दूर देश में जाकर भी
सीखने को तत्पर रहती हैं_बेटियाँ |
जब  कभी आहट पाती
चिहुक जाती हैं-बेटियाँ |
गाँव को शहर बनाती
उदारीकरण को मजबूत करती
आखिर  विकास के नाम पर
आधुनिक बनने पर भी
शोषण का शिकार होती हैं- बेटियाँ |
महिला संगठनों का नारा
बुलंद करती हुई देश को भी
आगे बढ़ाती जाती हैं-बेटियाँ |
चाचा-पापा, भाई-भतीजावाद में
खाप-पंचायत का शिकार होती हैं-बेटियाँ |
हलचल  मची है-हलकट जवानी से
मुन्नी की बदनामी से औ
मिस  काल की परेशानी से
अंतरजाल में सएबर क्राइम की
शिकार होती रहती हैं-बेटियाँ |
सोशल साइट्स के खेल में भी
अगली पंक्ति में होते हुए भी
निजाप नहीं पा रहीं हैं-बेटियाँ |
फेसबुक,  याहू  , ई-मेल से भी
मुक्त नहीं हो पा रही हैं-बेटियाँ |
कहते है-अनेकता में एकता ही
आजाद भारत का नारा है-
नेहरू ने पुकारा था
लोकतंत्र का प्यारा था |
आज तो बस यही दिखता है
मन-मोहन की बांसुरी भी
बेसुरी होकर स्वर को दबा देती है |
चुप्पी साधकर लोग लाज को
बचाने का बहना भार करते है
गवार बनकर देखते हैं वे
अपनी ही दाल को काली करते हैं लोग|
झूठ-मूठ के वायदों से ही
अपने घर को आबाद करके
दूसरों का घर जलाते हैं लोग|
आग की ज्वाला में भष्म होती हैं-बेटियाँ |
समुद्र की धार में भी
गंगा की निर्मलता को खोजते हैं लोग |
कहते  हैं थोड़ी सी  कसर है
लेकिन 
असली परीक्षा तो अभी बाकी है
कन्या-पत्नी की लाज बचाना अभी बाकी हैं |

डा. मनजीत सिंह १८/०१/२०१३




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