ठूँठ वृक्ष
गमले की सुंदरता
देखकर हर कोई कहता
वाह क्या शरीर है !
पेड़ का, पौधों का
पुष्प का, कलियों का-
जब माली आकर उसे
निहारता, पानी देता
ठूँठ हुआ वृक्ष विलाप करता |
ग्लोबल वार्मिंग को दोष देकर
कभी-कभी वह संतोष करता |
कभी शांत पड़ा सोच में डूब जाता|
अल्लसुबह अमृत की एक बूँदे
पड़ने पर तेजी से
कराहता हुआ और पाने की चाह में
बैचैन हो जाता |
खाद-पानी पाकर
थोड़ी हरियाली की मुरीद बनता
धूप-बारिस से बेहाल होकर
बार-बार आगे बढ़ने की
मुरझाए चेहरे पर खुशी लाने की
कोशिश वह जरूर करता|
प्रकृति के कण-कण से
उसका शरीर जोश से भर जाता
ऐसे ही एक दिन वह
अपनी सारी वेदना को भुलाकर
कष्टों से तार-तार होकर
नव-पल्लव की आस में
आभासी ही सही परन्तु
नए जीवन को पाकर
खुश होता, इठलाता, झूमता !
यह वही ठूँठ वृक्ष था जो
कभी मालिक की बगिया में
दुत्कारा गया था,
हीनता भाव से त्रस्त था
चमत्कार तो होता तब है जब
वह सभी वृक्षों का सहायक बनता||
डा. मनजीत सिंह
०५/०१/२०१३
गमले की सुंदरता
देखकर हर कोई कहता
वाह क्या शरीर है !
पेड़ का, पौधों का
पुष्प का, कलियों का-
जब माली आकर उसे
निहारता, पानी देता
ठूँठ हुआ वृक्ष विलाप करता |
ग्लोबल वार्मिंग को दोष देकर
कभी-कभी वह संतोष करता |
कभी शांत पड़ा सोच में डूब जाता|
अल्लसुबह अमृत की एक बूँदे
पड़ने पर तेजी से
कराहता हुआ और पाने की चाह में
बैचैन हो जाता |
खाद-पानी पाकर
थोड़ी हरियाली की मुरीद बनता
धूप-बारिस से बेहाल होकर
बार-बार आगे बढ़ने की
मुरझाए चेहरे पर खुशी लाने की
कोशिश वह जरूर करता|
प्रकृति के कण-कण से
उसका शरीर जोश से भर जाता
ऐसे ही एक दिन वह
अपनी सारी वेदना को भुलाकर
कष्टों से तार-तार होकर
नव-पल्लव की आस में
आभासी ही सही परन्तु
नए जीवन को पाकर
खुश होता, इठलाता, झूमता !
यह वही ठूँठ वृक्ष था जो
कभी मालिक की बगिया में
दुत्कारा गया था,
हीनता भाव से त्रस्त था
चमत्कार तो होता तब है जब
वह सभी वृक्षों का सहायक बनता||
डा. मनजीत सिंह
०५/०१/२०१३
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