कलाएँ बोलती है !
धरती और आकाश
जब एक हो गये ....!
चित्रों में बंध गये
तार-तार गो गये
जल रंग के सागर में
फूल-पत्ते भी खो गये
जहांगीर की जागीर में
अनायास ही जुड़ गये
अवनींद्र-पिकासो-सूजा
रजा से लेकर मकबूल
निर्द्वन्द्व भाव से खोकर
आत्माओं में राम गये
हम जैसा आम दर्शक
धीरे-धीरे से कह गये
कलाकार बोलता नहीं
कलाएँ बोल उठती हैं |
........................२४/०४/१३...........डा.मनजीत SINGH
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