बुधवार, 24 अप्रैल 2013

कलाएँ बोलती है !

कलाएँ बोलती है !


धरती और आकाश
जब एक हो गये ....!

चित्रों में बंध गये
तार-तार गो गये

जल रंग के सागर में
फूल-पत्ते भी खो गये

जहांगीर की जागीर में
अनायास ही जुड़ गये

अवनींद्र-पिकासो-सूजा
रजा से लेकर मकबूल

निर्द्वन्द्व भाव से खोकर
आत्माओं में राम गये

हम जैसा आम दर्शक
धीरे-धीरे से कह गये

कलाकार बोलता नहीं
कलाएँ बोल उठती हैं |

........................२४/०४/१३...........डा.मनजीत SINGH

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