रविवार, 28 अप्रैल 2013

व्यंग्य

व्यंग्य

आधुनिक भारत में राजनैतिक समाजवाद और विज्ञान का रिश्ता अटूट है | जैसे विज्ञान में 'लाजी' इकोलाजी, साइकोलाजी आदि मत्वपूर्ण है वैसे ही राजनीति और कमोबेश समाज में भी 'फेकोलाजी' और 'थेथ्रोलाजी' (इसे लोक में प्रचलित थेथर का हिंगलिश स्वरूप है ) नामक नये सिद्धांत (कापीराईट सहित ) अपना स्थान बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहें | यह राजनीति में परिभाषा के मोहताज नहीं | समाज में इससे जूझती जनता ही इसका दर्द बता सकती है | आफिस हो, चाय की दुकान हो, दुल्हे का घर हो, ट्रेन की यात्रा हो, इसका प्रभाव अपरिचितों पर ज्यादा दिखाई देता है | उस समय तो सामने वाला फेंकते-फेंकते इतना हल्का हो जाता है कि उसके भार को सहन करने में धरती माता को भी शर्म आती होगी लेकिन वह तो सबके लिए है | सबकी माँ है, अच्छे-बुरे में उनके यह भेद नहीं |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण

बीस साल की सेवा और सामाजिक-शैक्षणिक सरोकार : एक विश्लेषण बेहतरीन पल : चिंतन, चुनौतियाँ, लक्ष्य एवं समाधान  (सरकारी सेवा के बीस साल) मनुष्य अ...